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४. शृंगारमंजरी : शीलवती कथा-परंपरा
प्रास्ताविक
जैन कविओए अने साहित्यकारोए गुजरातमां कथासाहित्यनी एक आगवी परिपाटी जन्मावी छे अने पोषी छे. कवि जयवंतसूरिकृत 'शृंगारमंजरी' के 'शीलवतीचरित्र' अन्तर्गत प्राप्त थती 'शीलवतीकथा' आवी एक जैनकथा छे. शीलवतीकथा जैन कथासाहित्यमा व्यापकपणे प्रचार प्रसार अने प्रतिष्ठा प्राप्त स रस कथा छे. फलतः छेक संस्कृत - प्राकृतथी प्रारंभी अर्वाचीन गुजराती भाषा पर्यन्त
कथा | विकास, विस्तार अने रूपांतरने सुरेख रीते आलेखी शकाय एटली सामग्री प्राप्त थाय छे. कवि जयवंतसूरिए आ परंपरागत प्राप्त कथा-सामग्रीमांथी प्रेरणा मेळवी कदाच प्रथमवार मध्यकालीन गुजरातीमां पोतानी प्रतिभा अने कल्पनाना सामर्थ्य अनुसार शुद्धि-वृद्धि करी तथा तेने पेताना युगां लोकमानस अने लेाकरुचिने अनुकुळ घाट अर्पी, पद्यात्मक स्वरूपमा स-रस वार्ता सरजी छे. कथा परंपरा : संस्कृत - प्राकृतमां शीलवती कथा
प्राकृत भाषामां रचायेल श्री सोमप्रभाचार्य कृत, 'कुमारपाल प्रतिबोध' [ई.स ११५८ ] मां आपणे 'शीलवती कथा' पहेल प्रथम शीलवतनी दृष्टान्त कथा रूपे उपलब्ध थाय छे. आ कथा निरूपता केटलांक ग्रंथो आ पछी संस्कृत - प्राकृतमां प्राप्त थाय छे. एमां संस्कृत - प्राकृतमां रचायेल 'शीलेापदेशमाला' [वृत्ति - सोमतिलकसूरि, ई. स. १३३८] मां मळती ' शीलवतीकथा', प्राकृतसंस्कृतमां रचायेल ‘श्रावक प्रतिक्रमण - वंदितु सूत्र' [वृत्ति रत्नशेखरसूरि, ई. स. १४४० ] मां प्राप्त थती 'शीलवती कथा', प्राकृतमां रचायेल 'भरतेश्वर बाहुबलि' [वृत्ति शुभशीलगणि, ई. स. १४५३ ]मां मळती 'शीलवती कथा' हाल उपलब्ध छे. आ त्रणे ग्रंथो मुद्रित स्वरूपमां मळे छे.
अर्वाचीन कालमां पण त्रणेक कथाग्रंथोमां 'शीलवती कथा' सांपडे छे. संस्कृतमां विजयलक्ष्मीसूरिकृत 'उपदेशप्रसाद' [ ई.स. १७८७ ] मां शीलवतना दृष्टान्त रूपे ' शीलवती कथा' मळे छे. संस्कृतमां रचायेल 'श्री शीलवती कथानक' [प्र. ई. स. १९२० ] मां स्वतंत्रपणे निरुपायेल 'शीलवती कथा' प्राप्त थाय छे. वळी संस्कृतमां रचायेल श्री अजितसागरसूरि कृत 'अजितसेन शीलवती कथानक' [प्र. ई.स. १९२८ ]मां पण पूर्वोक्ति ' शीलवती कथा' ज निरूपायेल छे. गुजराती मां शीलवती कथा
प्राचीन - मध्यकालीन गुजरातोमां पण आ ' शीलवती कथा' आलेखती केटलीक कृतिओ प्राप्त थाय छे. सौथी प्राचीन कृति ते कवि जयवंतसूरि कृत 'शृंगारमंजरी' ने गणावी शकाय. त्यार बाद मुनि देवरत्न कृत 'शीलवर चुपड़ मां [ ई.स. १६४२ ]मां प्रायः आ कथा मळे छे. आ पछी सात वर्षना ट्रंका गाळामां मुनि दयासागर कृत 'शीलवती चउपई' मां [ई.स. १६४९]मां पण आ 'शीलवती कथा' ज आलेखाइ छे. त्यार बाद कवि कुशलधीर कृत 'शीलवती चतुष्पदिका' [ई.स. १६६६] आ कथा अंगेनेा ध्यान खेंचे एवो सुंदर प्रयत्न छे. जिनहर्ष कृत 'शीलवती रास प्रबंध' [ई.स. १७०२ ] पण आ कथा निरूपती एक समृद्ध कृति छे.
अर्वाचीन समयमां पण आ कथा आलेखवाना प्रयत्ना थया छे. अमां 'श्री जैन साळ सती चरित्र' [ ई. स. १९३९]मां एक सती तरीके 'शीलवतीनी कथा' मळे छे. तेमां आ कथानुं अर्वाचीन स्वरूप सांपडे छे.
आम ई.स. ११५८थी आरंभी आज पर्यन्तना लगभग ८००-९०० वर्षना सुदीर्घ विस्तारी फलक पर आ कथाने विकास के विस्तार थयेले। जोइ शकाय छे. जे प्रस्तुत कथानी जैन साहित्य-समाजमांनी लोकप्रियता सूचक छे.
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