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________________ नाम जाणवा मळया छे. अक 'विवेकधरगणि' अने बीजा ते 'जयवंतसूरि'. आ परंपराने अमणे संस्कृत भाषामां रचेली 'काव्यप्रकाशनी टीका ने अंते मळती प्रशस्तिमांथी समर्थन मळे छे. मुनिश्री जिनविजयजीना ‘शत्रुजय तीर्थाद्धार प्रबंध'नी२ प्रस्तावनामांथी आपेल वंशवृक्षमा कवि जयवंत पंडितना स्पष्ट उल्लेख मळे छे. ते आ मुजब छे : विजयरत्नसूरि धर्मरत्नसूरि विद्यामंडनसूरि ਕਸ਼ ਵਿਦੇਸ਼ | ਚੀਜਨਕ ਸਬਦ जयमंडन विवेकमंडन सौभाग्यरत्नसूरि ਬੀਐਮਬਕ सौभाग्यमंडन रत्नसागर विवेकघीर जयवंत पंडित क्षमाधीर आ वंशवृक्षमां शरतचूकथी विनयमंडन आध्यायनु नाम रही गयु छे, अम जगावी श्री मोहनलाल द. देसाई जयवंतसूरिनी गच्छ परंपरा आपणने आ प्रमाणे आपे छे.3 विजयरत्नसूरि धर्मरत्नसूरि विद्यामंडनसूरि विनय मंडन उपाध्याय १. जयमंडन २. विवेकमंडन विवेकधीरगणि जयवंत पंडित ३. रत्नसागर क्षमाधीर ४. सौभाग्यरत्नसूरि ५. सौभाग्यमंडन आ बंने वंशवृक्ष परथी कवि जयवतसूरिनी गच्छ परंपरा वधु स्पष्ट थाय छे. १ जुओ, जैन गूर्जर कविओ, भाग श्रीजो, खड 1, पृ. ६७२. २ शत्रुजय तीर्थोद्धार प्रबंध, संपादक, मुनि जिनविजयजी, १९१७, प्रस्तावना पृ. ६९. ३ श्री जयवंतसूरि ले. मोहनलाल, द. देसाई, आत्मप्रकाश, १९२४ [वीरात् २४५०, अंक १०] पृ. १२. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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