SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शृंगार मंजरो बोलावियां बोलइ नहीं, साहामूं जोइ न हसंति, देखी छाया पालटइ, अति उधड मुहि जंति. १५८५ देखी उकरायुं जोइ, मचकोड मुख- राग, हवे लक्षण जाणवां माणसां नीराग. १५८६ सूरिय देखी कमल परि, विहसइ नेहि सराग, अनिमिख जोइ वली वली, मांणसडां सराग. सवियारां विज्झुमि भरियं, घोलिर बँक वलाइ, ससनेहनां नयां, लक्षमाथी गोपाविउ पणि नेह - रस, नयणे चतुर लहंति, क्षणि मीलियां क्षिणि विहसीयां, पीय सम्मुहा वलंति. १५८९ अंबर कस्तूरी परिं सज्जन तणा सनेह, जणाइ. १५८८ छांना पणि नयणे करी, प्रगट लहीजइ तेह. १५९० देखी मरकलडे हसइ, बोलइ सरस सराग, कहिउँ मानइ बोल सा सहइ, ते जाणेवां सराग. १५९१ इत्यादिक जे नेहनां, लक्षण कहियां छई सार, ते सवि जाणि सार्थपति, हरखिउ चित्ति अपार १५९२ १५८७ मन जांणी मन दीजइ, ते रुडु निरवाणि, अणजाई जो आपीइ, जण हासूं सय हाणि. १५९३ दीसीइ रंग जेतलु, जे तु कीजइ रंग, निसनेहां सिउं राचतां, दुक्खि दाजइ अंग. १५९४ एक एकनइ वेधइ मरेइ, साहामूं नाणइ रंग, दैवईं इम कां सरजीउं, जिम दीवा - पतंग सरखा मन बेहु हुई, एक एक विण न सकइ रही, तेहजि प्रीति सुचंग. १५९६ मानइ निज बोल, परिहरीइ निटोल. १५९७ सोना केरी भल्लि, कहसि हैआ गहिल्ल. १५९८ सरखु रंग, बोल जि कहीइ तेहनि, जे वचन उवेखइ आपणउं, ते पाणी मांहइ न नांखीइ, नीरस नइ मनवत्तडी, म त्राटी न खमइ पीटणी, धसी पडइ उछन मन-वत्तडी, सासु पडइ गयवर केरु भारभर, खरिं नव हिणउ जाइ, मन आपिउ कुमांणखां, अघवचि महेली जाई. Jain Education International समूल, सबोलि. १५९९ For Personal & Private Use Only १५९५ १६०० www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy