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________________ यंगारमंजरी कुसुम-सेजि जिणि मंदिरि, सुख विलसती रसाल, दीठां न गमइ ठाम ते, देखी सालइ साल. ९२५ तेह ज माणस तेह ज घर, तेह ज ते ठाण, एकइ जाते सहू गयुं, चंचल थयां छइ प्रांण. ९२६ अन्न न भावइ विरहीयां, जल दीठउं न सुहाइ, वैध नही को तेहवु, जस दुख कहीइ जाइ. ९२७ जे सहि मीलीया सजन सिउं, तस हैयडइ नितु साल, जे सजन सि नवि मिल्यां, सुनउ तस अवतार. ९२८ सजन साथइं जे मिल्या, ते नितु झुरि मरंति, गुण संभारी आवटइ. सुख सुहणइ न लहति. कां ते सजन सरजीया, अह्मे सरज्यां कइ काइ, दुख कारणि नेह कां करु, दुख-सायरि पडीयांइ. ९३० इम गुण समरी विलवती, मेहलंती नीसास, मुच्छाइ धरणी ढली, समरी प्रेम-विलास. ९३१ सही शीतल उपचारडा, करइ अनेक उपाय, नीर चंद चंदनह, ते विख-वेली थाइ. ९३२ विरह दवानल परजलिउ, छांटि म सहि सलिलेण, हैयडं पाहाण तणि परि, पीउ जासइ फूटेण. ९३३ शीयल कयली पत्तडे, वीजि म विरह विलत्त, विरह-दवानल धीकीउ, वाधइ वाइ जडत्ति. ९३४ भींतरि विरहानल तपइ, बाहिरि सिउ उपचार. उषध वाहालां-संग विण, न समइ रोग लगार. ९३५ मयणराय किम वीसरइ, जायु विरह संतावि, सुमनस-दसण शीयल-जलि, सिंचजइ नहुजाव.(?) ९३६ चंदउ चंदन केलि दल, ए जस इधण हुंति, पीउ विरहानलि सोइ सहइ, किम उल्हाविउ जंति. ९३७ रावण-रिपु-सेवक-पिता, अरि-वल्लभ मत लांइ, तातिं तेलई शीतल-जल, छम छम अधिक सथाइ. ९६८ गहिली मेह पिय-वयण, विण महेली कुंभ-पिएण, सायर-तनुया-सुत दही, सहि हूं दुब्बल तेण. ९३९ हरतिय-नयणे जे वसइ, हे सखि ते मुज देइ, अगनि अगनि उतारीइ. सो पुण मयण दहेड. ९४० कामण मोहण जिणि कर्या. तेदजि टालड दोख. जेणइ लायु वेघडु, तेहजि भंजइ शोख. ९४१ आकरसइ गुण ताहरा, मोहन-रूप रसाल, वसीकरण तोरां नयणलां, मारण विरह कराल, ९४२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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