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जयवंतसूरिकृत
नेह-मूल दुख-वेलिनं, विरस विरंगी जेह, प्रिय विरहानल-फूलडां, मरणा-फल हुइ छेह. ९०७ सूकां भीतरि सरसपणि, मढवि दख वेयंति. नेहइ रतवि पंडुरां, दुणां बिहु तणयंति. ९०८ कां किधां परदेसडइ, वाहालां नेह सुरंग, अंगो अंगइ न मिलत, जउ नयणां मिलत सुचंग. ९०९ चंद नलिनी रवि कम लनी, न मिलइ अंगो आंग, दूरि दीठइ उल्लसइ, नयणां केरइ संगि. ९१० नवि बोलावइ मधुर सरई, नापइ काइ रसाल, नेह नयणे निहालीयां, वाघइ कछप बाल ९११ सुंदरि नेह-गहेलडो, विलवती निश्धार, प्रीउ सिउं मन व उलावि कारे, पाछी वली सुविचार. ९१२ उभी वडनी छांहडी, नयनि उनइओ मेह, डग आधां न भराइ ते, हो हो धिग् ससनेह ९१३ प्रिय विरहि रोयंतडइ, रोआव्या गिरि-टूक, नीजरणां मसि जल झरइ, गोरी जोइ निशंक. ९१४ वनि रोआव्यां संखडा, गोरीइ रोयति तंत, साल सलाव्यु विरहीया, गुण समरी विलवंत. ९१५ वन वारइ पंखी मसि, रहि रहि सुगुणि म रोइ. जिहां संयोग वियोग तिहां, दुख धरई सिउं होइ. ९१६ विरह तणां दुख दोहिलां, नवि वीसरइ जीवंति, विरहिं माणस न विसरइ, पणि दूबलडां हुंति. ९१७ सज्जन पहिलूं हूं सि न गइ, दुख न देखत एह, हैउ न फाटइ स्या भणी, वाहालां तणइ बिछोहि., ९१८ माणस केरा हैयडलां, कठिन घडयां किरतार. विरहि न फाटई व्रजमय, धिगू धिगू मनुष्य-जंवार, ९१९ विरह कराली बालिका, पगि पगि इम विलवंत, निज घरि आवी गोरडी, दिन जाइ झुरंत. ९२० वनि भवनि कही सुख नहीं, तालोबेलि ऊचाट, क्षणिक बाहरि क्षणि भुइ, क्षण उभी क्षण खाटि ९२१ जेहनइं जेसिउं नेहडु, नेह विण तस मनि रांन एकि जाणे जग भरिउ, जेहसिउं नेह-बंधाण. ९२२ सवि सूनुं सजन विना, ऊवस सघलू गांम, दुख भर पुहुवो हीडतां, कोइ न पूछइ नाम. ९२३ जे सेरी सोहावती, लडसडते डगलेण, तेणइ सेरीइं मृग चरइ, सजन विदेस गएण. ९२४
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