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________________ जयवंतसूरकृत ... कमल-मुखी हंस-गामिनी, अलि-कुंतल थण चकु, मयण महानल उल्हवण, गोरी वाविअ थक्क. १५३७ गौरी लावणइ भरी, तिम चंपेविय देहि, जिम अणमातुंअ थण मसिं, बाहिरि पसरि एह. १५३८ गोरी थणहर-कोट्ट माहिं, मयण-नरिंद रहेवि, झुझ करेसि हर सरिस, पुणरवि शर संधेवि. १५३९ गोरी-थण अमीइ भरिया, सेस रहिउ चंपंता, उंछह घडीउ चंदलु, तिहुयण नयणाणंद. १५४० गोरी-थणहर घड-जूअली, नीर भरइ लायन्न, निग्गय रमणह थालिथी, सींचणि रोमवलि वन्न. १५४१ छयल विडुग्गय चिंतडी, जिम हैंडइ नवि माइ, गोरी गोरा-तुंग-थण, तिम हैड न समाइ. १५४२ को तीरइ तीह वन्नीठं, थण-गिरि अंतर-सार, जीह अंतरि सकन्हहर, निवसइ गुण-भंडार. १५४३ प.ला तनि लायण-लय, पल्लविया हत्थेण, फुली नयणां फुलडे, फली अति थोर थणेण. १५४४ बाला लायणइ भरी, मारइ तिखु कडखु, डाढ गलावइ दूरिथी, जिम चंची फल पक्क. वासुकि रूपा-नेउर मसि, गोरी पाइ पडंति, विसहर वेणि बांधीया, छोडणि सेव करंति. १५४६ मुहुर झंकार सुवन्नमय, सचित्तलां सुवंक, गोरी नउर वयण जिम, हैडु हरइ निसंक. १५४७ कोमल पटुली पहिरणइ, उरि कंचुउ सनील, झाझरडां रमिजिम करइ, गोरी चलइ सलील १५४८ ससि-वयणी मृग-लोयणी, वेणी-दंड भुजंग, मधुर बोलंती हंसली, गज-गामिनी सुचंग. १५४९ जे जे अवयव जिहां जिसिया, कामिक नइ करइ मोह, गोरी अंगइ दीसीइ, ते ते तिहां समोह. १५५० सूती देखी सुंदरी, मनोहर रूप रसाल, सारथपति मनि चीतवइ, घिन घिन ए भूपाल. १५५१ गोरो गोर थोर थणी, सरस सकोमल वाणि, ' जस अंगणि मंडण हवइ, तस जीवित सुप्रमाण. १५५२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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