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________________ १४० जयवंतमूरिकृत सज्जन सहिजिं चोरटा, चोरी करइ नित नित्त, जाइ छइ अह्म देखतां, चोरी अमारां चीत्ति. १९०१ रागवती मन मांडवइ, ऊगी प्रीति-लयांइ, नेह-जलइ नितु सींचयो, जिम नवि सूकी जाइ. १९०२ तुह्म म जाउ जउ कहूं, तु अमंगल होइ, जाउ कहितां जीभडी, नीठर शत-खंड होइ. १९०३ गरुअडि बइसु जउ कहूं, जिम रुचि अदासीन, वाहलां मांणस चालतां, उतर दि किम मन्उ. १९०४ जल भरि नयण न जोइ सवइ, गदगद कंठ सशोकि, हइडु गहिंवर थइ रहिउं, वाहलां जातां शोक. १९०० माया उतारु रखे, गया पछी परदेसि, रे सज्जन गुणवंत वली, तूंह नि कहोइं मिलेसि. १९०६ कुशलखेम पंथइ हयो, वहिलां वलण करेउ, मनवंछित कारय करु, को अबसरि समरेउ. १९०७ तुह्ये सज्जन गुणवंत छउं, मिलसइ सजन अनेक, पणि अह्य हैअडू तुह्म विना, ठरसइ नहों किहिं अक. १९०८ भमरांनंइ फूल ज घणां, सरोवर घण हंसाह, मित्त घणा सुमाणसह, परदेसडइ गयांह. १९०९ सार्थवाह उवाचठामि ठामि दीसइ घणां, नदीआं वावि तलाव, मेह विना बप्पीहडा, कहि न करइ मन भाव. १९१० वनि वनि चंदन-तरु नही, सरवरि सरवरि हंस, ठामि ठामि सज्जन नहीं, जेहथी पुहुचइ हुँस, १९११ सरवरि सरवरि कमल छइ, निरमल नीर अपार, पणि मानस विण हंस न ठरइ चित्ति लगार. १९१२ वन-बाडी तरुयर घणा, पणि कोइलि नि अंब. जेहनि मनि जे वल्लडु, ते विण तेह निरत्त. १९१३ सज्जन सभावइ भमरलु, ठामि ठामि बइसइ, पणि मालति विण हसनू, न ठरइ चित्ति लगार. १९१४ राजन तुह्मो सुजाण छउ, मिलसइ मित्त घणांइ, गुणवंता अरथी घणा, रखे वीसारु तांइ. १९१५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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