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शृंगारमंजरी
राजा उवाचअक जि हंसि सरवरह, जे शोभा जग मांहि, बगला कोडि गमे मिलइ, तुहि न नयण भराइ. १९१६ सार्थवाह उवाचजिम सरोवरनां हंस विण, दिन झरतां जाइ, तिम सरवर विण हंस पणि, झरी पंजर थाइ. १९१७ सजन सीलाया-सुहेडी, वैर सुभाषित सारि, ओ मेहलंतां दोहलां, वेध व्यसन संसारि. १९१८ राय प्रति इम बूजवी, सुभ दिनि शुभ महूंरत्ति,' प्रवहण पूरी सज थयु, जावा सारथपति. १९१९
ढाल ३४ राग केदार गुडी
सारथपति हवइ सज थयउ, जावा जाव मणि-दीपगामि रे, राजन आविउ रे मोकलाविविा, पूठइ पूठइ सायर तीरि रे. १९२० राजन करइ मोकलामणी, वरसइ वरसइ आंसूडानी धार रे, सजन जातां परदेसडइ, हुइ हुइ दुख अपार रे. १९२१
दुपद. राज. आंचलि. एणइ समय भूमिहरमां थकी आवी आवी सणग-दूआरि रे, सुखासनि बइसी राय, आगलइ आवी आवी करीअ शंगार रे. १९२२ राय प्रति धूरति इम कहइ, कीधु कीधु घणउअ प्रसाद रे, राजन देस विदेशडइ, रहिसइ रहिसइ अझ जसवाद रे. १९२३ तारा तारा चरणप्रसादथी, रहियां रहियां सुखइ अणि गामि रे, कीधी कीधी घणी रे उपार्जना, सीधा सीधां चिंतित काम रे. १९२४ राजन तुह्म बहूमानथी, कीधउ कीधउ जे अपराध रे, खमयो खमयो ते सवि दोसडा, करयो करयो वचन अबाध रे. १९२५
दूहा अतिहिं सनेहां संग थकी, जे अभ्मीणा दोस, खमयो सवे अपराघडां, मित्त म धरयो रोस. १९२६ सज्जन सनेहां रूसणइ, जे उलंभा दिध्ध, वीसरतां न वीसरइ, जे मन मांहि प्रसिद्ध. १९२७
१. श्रुभ हुरत्ति २. साग्य
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