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________________ शृंगारमंजरी सेठि मनावइ वली वली, शीलवती सुविचार, सुकुलीणी सा सुंदरी, मानिउ बोल विचार. २८९ सज्जन चंदन पन्ननिं, ए त्रिहूं एक सभाव, भागई पणि गुण करइ, नहीं अवगुणनु भाव. २९० कमल-नाल जिम कुंअलूं, तिम दुरियन मन होइ, वार न लागइ भांगता, निवि. संधाइ सोइं. २९१ व्रज थकी अति आकरां, सज्जन केरां चित्त, अवगुणि किमहि न भंगीइं, अविचल हुइ सुचित्त. २९२ मुहि कडूऊ बोलइ नहीं, खल बोलणां सहंति, गुण लइ दोस न उच्चरइ, सज्जन किमहि न रुसंति. २९३ दुरियन पीडया सजन पणि, सहिजइं शुद्ध स्वभाव, छाहारि टप्पण मइली, अधिक उजल भाव. २९४ सज्जन गुण केतां कहूं, तु हइअ सरिस दोइ, पाहणि रेखा प्रीतडी, अशनि समी रीस होइ.. २९५ कठिन न बोलइ दुहवीया, मुहुडइ हंसी बोलंति, मर्म न पभणइ पर तणा, सज्जन लक्षण हूंति. २९६ पर अवगुणि मनि नवि धरइ, नित्य करइ उपगार, वइरी नइं पणि नवि कुपइ, सज्जन सहिज जुहार. २९७ गुण कीधि अवगुण करिं, केवि करइ उपगार, अवगुण कीधि गुण करइ, ते सज्जन संसारि. २९८ सज्जन तुहीन तणी परिं, तापि विलाइ तेह, दुरियन दीवा समवडिं, अधिक जलइ कय-नेह. २९९ सज्जन अति रीसिं भरिया, विप्पिय न भणइ तोइ, राहु मूहि ससि किरणलां, अतिहिं शीतल होइ. ३०० सज्जन दुरियन परिभाव्या, गुण पणि तोइ करंति, अगनि अगर दजाडतां, परिमल बहुलु हूंति. ३०१ चंदन वनि जिम सीयला, विरला सज्जन हूंति, छेदन भेदन तनि सहइ, पण बहु परिमल दिति. ३०२ विद्रुम छेदिया ठायथी, कीधां खंडो खंडि, वींध्यांजण जण करि चड्यां, तुहइ रंग अखंड. ३०३ वरि ओक वरस विलंबीइ, कीजइ सुमनस संग, छेह लगइ नवि उतरइ, राता कांबाल रंग. ३०४ जइ अवराह जिसय करिया, सुयणा तो न धरंति, ओक समई जे गुण करिउ, ते अनुदिन समरंति. ३०५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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