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जयवंतसूरिकृत
अछउ नयन मेलावडु, अछउ तेहनी वत्त, नाम सुणई जीव कलमलइ, अति अवटाइ चित्त. ११४३ है है दैव अटारडु, वांकां पाहइं वंक, जस सज्जन परदेसडइ, तीह न दीधी पंख. ११४४ पांख सरजी पंखीया, जेह न आवइ कन्जि, तु जाणत विहि चतुरिमां, जउ माणस नई हुज्ज. ११४५ अथ अणखीयां : आगइ विरहानल संतावइ, पीउ परदेशी किम आवइ, बपीहा वली नेह जगावइ, कहु सखी किम अणखि न आवइ. ११४६ रातिं नयणे नीद्र न आवइ, अन्न-उदक सहुणइ नवि भावि, सही जाणती कारण पूछावइ, कहु सखी किम अणखि न आवि. ११४७ विरहानलि अति तनुऊ तावइ, ए मन-दाघ न कोइ समावइ, दुख अनेरुं वैध जणावइ, कहु सखी अणखी किम न आवइ. ११४८ पीउ परदेशी मेह जडि लावइ, अंगणि आवी मोर कीगावइ, दाधा परि लूण लगावइ, कहु सखी किम अणखि न आवइ. ११४९ कबहीं नयणे निद्रा आवइ, सहुणइ आवी प्रोउ जगावइ, जव जागू तव नासी जावइ, कहु सखी किम अणखि न आवइ. ११५० इति अणखीयां भमर चितित्त जिम मालति खटकइ, सुहड अंगि बाणावलि खटकइ, नदू-सल्ल जिम पगि पगि खटकइ, नवु-नेह तेणी परि खटकइ. ११५१ पुहुवी सरोवर अंब रसालइ, धडहड धडहड अंबर सालइ, जिम जिम वरसइ मेह वरसालइ, तिम तिम तुज मनि ते वर सालइ. ११५२ सज्जन विण मुज आहार न भौबइ, कंठ थकी आ हार न भावइ, ते विण मंदिर आहार न भावइ, कहुनइं विरह-प्रहार न भावइ. ११५३ वरसह मेह अखंठी-धारा, प्रीउ मेहली चालिउ निरधारा, मदन-बांण वीधइ वीधारा, तनि वहइ विरहनी करवत-धारा. ११५४ हाथे न गमइ सोविन-कंकण, नयणे वरसइ सो विन कंकण, झरी गइ तव सोविन कंकण, चंद चंदन दइ सो विन कंकण. ११५५ वरसइ झिरिमरि मेह कलावी, अंगणि वासइ मधूर कलावी, एणे बापीडे हूं अकलावी, प्रीउडु चाल्यु मुज मोकलावी. ११५६ इणि रिति जाइ घरि बकलावी, प्रिय संगमथी जाइ कलावी, प्रिय विण किम दिन ग{ एकला वी, कंत मेलावु कोइ कलावी. ११५७ वाजइ टाढि सबल हीमालइ, बली गइ ते कोमल मालइ, इणि अवसरि प्रीउडु नहीं मालइ, मयण-भील मारइ मुज मालइ. ११५८
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