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________________ शंगारमजरी ओं विनयमंडन उवज्झाय, गुण गणतां न लहूं पार, श्री विद्याइ सूरगुरु समा, रुपइ मयण अपारु. २४११ भावियण-जन मन-मोहनी, जस वाणी-विस्तार, लब्धिं गौतम गुरु समा, सुह्म सामि परिवार. २४१२ जे श्री गुरुनु वंश पणि, पसरिउ अति सुषिशाल, सकल सछाय सोहामणु, जिम तरु माहिं रसाल. २४१३ ते श्री सहिगुरु गुण तणा, कहितां नावइ पार, मुझ मुखि एक जि जीभडी, गुण तु घणा अपार. २४१४ कागल ससिहर ऊजलु, जेहवू निर्मल रूप, जस यश लिखीउ दीसीइ, मिय मय ससि सुरुप. २४१५ प्रथम सीस सोहामणां, सघला गुणनु ठांय, विजयमान कुलमंडनइ, श्री विवेकमंडन उवझाय. २४१६ चंदतणी परिवाधता, बीजा सीस सुविचार, श्री सौभाग्यमंडन पंडित, चतुर सोभागी सार. २४१७ अवर सवे परिबार जे, श्रीगुरू तणउ विशेखि, ते चिरनंदु भूतलिं, साधु साध्वी अनेक. २४१८ नामई श्रृंगारमंजरी, शीलवतीनु रास, श्री विनयमंडन गणि सीस कीउ, जयवंत लधु सीस तास. २४१९ मंदमति अति लघु वई, अतिरस सरस प्रमाणि, कांइ अणघटतू कहिउं, खमयो तेह सुजाण. २४२० आगई जे कवीयण हवा छइ, वली होसइ जेइ, हूं सविनी पग-रेणुका, हैयडइ धरयो एइ. २४२१ श्री विनयमंडन गणोंद्रनु, लघु सीस भूमि प्रसिद्ध, जयवंत पंडित अभिनवी, श्रृंगारमंजरी किद्ध, जां रवि सायर चंद्रमा, धरणी मेरू-प्रमाण, तां चिरनंदु ग्रंथ 'ए, जां पृथ्वो मंडाण, २४२२ २३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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