SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयवंतसूरिकृत सोलई विघ्न सवे टलइ, मनवंछित फल होइ, नरवर सुरवर संपदा, घर-अंगणि सवि जोइ. २३९८ कल्पद्रुम श्री शीलनु नवविधि वाडि रसाल, मनवंछित सुख पुरवइ, सुर-सुख मुगति विशाल. २३९९ मयण महा-भड जीपत्रा, जे धरइ शील-सन्नाह, जय-लक्ष्मी तेहनई वरइ, घरनी अंगि ऊमांह. ३४०० दिनि दिनि उदय हुइ घणउ, सघलइ जयजयकार, ए सवि महिमा शीलनु, मानइ सवि भूपाल. २४०१ शोलवती चरित्रई करी, अह वखाणिउं शोल, भवीयण पालु अक मनि, जिम पामु सुख लील. २४०२ वीर जिणेसर सीसवर, सुहम-सामि गणधार, साधु गुणई सोहामणो, जेहनु वंश-विस्तार २४०३ श्री कोटिक गुण चिरंजयु, वैरी शाख रसाल, चंद्र तणी परि ऊजलु, श्री चंद्रकुल सुविशाल. २४०४ वृद्धतपापक्ष जाणीइ, श्रीरत्नाकर गछ, कल्पलता जिन वाघती, दीसइ जिहां गुण-गच्छ. २४०५ श्री तपगच्छ उधोतकर, श्रीविजयरत्न सुरिंद, जिम सूरपति सूस्वदमा, जिम ग्रह-गणमां चंद. २४०६ श्री विजयरत्न सूरिंद गुरु, पट्ट महोदय भाण, श्री धर्मरत्न सूरीश्वरु, केतू करू वखाण. २४०७ वादीकरि-कुलकेसरी, मुनिवर कुल-शृगार, वल्लभ संयम-कामिनी, गुण-गणमणि भंडार. २४०८ तास सोस सुर-तरु समा, सेवइ नरवर पाय, श्रीविद्यामंडन सूरीश्वर, श्री विनयमंडन उवझाय. २४०९ श्री विद्यामंडन सूरिंद गुरु, सीस सोभागी सार, श्री सौभाग्यरत्न सूरीवर, विजयमान गण धीर. २४१० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy