________________
जमवंतरिमल संवत सोल चउदोत्तरो, आसो सुदि गुरू बीज, कीधी शृंगारमंजरी, जयवंत पंडित हेजि.
इतिश्री शीलवतीचरित्र गर्मिता श्रृंगारमंजरी नाम्ना, सुभाषिता समाप्ता, संवत १६८५ वर्षे पो० सुदि र बुधे लखितं, हबदपुरे मध्ये, प्रेमसागर लिपि कृताः, श्री रस्तुः, श्रुभंभवतु, कल्याणमस्तु छ. श्री, ठ, छः, श्री. कडुआमती गछे श्राविका बाई मटु पठनार्थ.
झुंभम् भवतु छ.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org