________________
(४७) प्रकृति, पात्रना रूपवस्त्रालंकारादि, कुदरती के मनुष्यनिर्मित घटनाओ अने पात्रोनां चित्तवृत्ति व्यापारो-आ सर्वनु यर्थाथदर्शी वर्णन करवाना कवि जयवंतसूरिनेा प्रयास स्तुत्य छे.
मध्यकालीन गुजराती कविओ सामान्य: परंपराप्राप्त रूढ उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारो विपुल संख्यामा प्रयोजता, तदानुसार कवि जयवंतरि कृत 'शंगारमंजरी'मां पण स्थळे स्थळे आवा अलंकारोना प्रयोग जोवा मळे छे. केटलीक वार कवि जयवंतसूरिओ उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक उपरांत अर्थान्तरन्यास, दृष्टांत, व्यतिरेक वगेरे जेवा अलंकारा पण स्वभाविकताथी प्रयोज्या छे.
कवि जयवंतसूरि केटलीक वार लोकोक्ति के रूढिप्रयोगना उपयोग करीने पण वक्तव्यने स्पष्ट अने सुरेख बनावे छे..
[आना उदाहरणोनी विस्तृत यादी परिशिष्टमां आपी छे. ]
मध्यकालीन काव्यसाहित्यमा 'रास' नामना काव्य प्रकारनु क लक्षण मे छे के ते अक गेय प्रकारनी रचना छे. एमां तालबद्ध रागमा गाई शकाय एवी विविध प्रकारनी देशीओ रचायेली मळी आवे छे. ते प्रमाणे कवि जयवंतसूरिनी प्रस्तुत कृतिमां पण आ प्रकारनी विविध देशीओ जोवा मळे छे.
प्रस्तुत रासमां कुले अकावन ढाल मळे छे. कविले आमां जुदी जुदी देशीओ अने रागना उपयोग को छे. कविए केटलीक ढालोमां परंपराप्राप्त देशीओनो उपयोग को छे. जेमके बीजी ढालमां कविले 'थूलिभद्र अकवीसोनी देशी'ने। प्रयोग को छे. सेवी रीते नवमी ढालमां कविओ 'गिसुकुमालना चाढालीया'नी 'अणि परि राणी देवकी' से देशीने प्रयोग को छे. तो बारमी ढालमां 'श्याम प्रधुम्नना रास'नी 'समोसरण देवइ रच्यु ' देशी प्रयोजी छे.
कवि देशीओमां केदारु, केदारु गुडी, मल्हार, भीली मल्हार, देशाख, सामेरी, धन्यासी, रामगिरि, सिंधूडउ, मारुणी, साधुओ गाडी, आसाउरी, काफी, भूपाली वगेरे वगेरे रागोनेा उपयोग को छे.
कविए रासमां दूहा, चौपाइ, हरिगीत, सवैया, से।रठा, उधार वगेरे छंदानी देशीओने। उपयोग को छे. केठलेक स्थळे तो शुद्ध दोहरा अने चौपाई पण आप्यां छे.
कवि जयवंतरिना कृति-समुच्चमां 'शृंगारमंजरी' सर्वश्रेष्ठ छे. उपलब्ध कृतिओमां सौथी विस्तृत प्रस्तृत कृति कविनी परणित प्रज्ञानी प्रसादी छे. बहिरंगमां तेमज आंतरतत्त्वमा कविनी जामेली हथोटीनो परिचय आपनार प्रस्तत कृतिमा स्थाने स्थाने कलाकैशल्य तथा कल्पनाशक्ति-कविशक्तिनी झांखी थाय ते स्वाभाविक छे.
उपर्युक्त चर्चा-विचारणा परथी आपणे कही शकीओ के अशिथिल वस्तुसंकलना द्वारा कथा. निरूपण. सुरेख अने व्यक्तित्वद्योतक पात्रालेखन, गतिशील अने साक्षात्कारक चित्रो आलेखवानुवर्णन कौशल्य, भाषाप्रभुत्व अने अलंकारोनेां उचित विनियोग इत्यादि अंगो परत्वेनु कवि जयवंतसूरिनु कौशल अमनी अक कवि तरीकेनी प्रतीति करवाने प्रर्याप्त छे. आम जयवंतसूरि केवळ रास करनार रासकार नथी. पण एक गणनापात्र साचा कवि छे. अम निःसंकोचपूर्वक कही शकाय. जैन साधु होवा छतां पण अमन कवि तरीकेनु पासु पण ठीक ठीक उजळु छे. प्रस्तुत समग्र कृतिमां एमना कवित्वने। मधुर प्रकाश पथरायेले छे.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org