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'सूर' तरीके उल्लेख मळे छे. वळी आ ज सालमां संवत १६१४मां रचायेली 'शृंगारमंजरी नामनी एमनी कृतिमा एमनो उल्लेख पंडित तरीके छे. एटले आ परथी अनुमान करी शकाय के 'शृंगारमंजरी' जेवी उत्कृष्ट रचना पछी तरत ज एमने संवत १६१४ ना अंतमा 'सरि' पद मळयु हशे. ___ मोहनलाल द. देसाईनी उपरोल्लेखित तक सरणी स्वीकारीए तो एमनो जन्म स्थुलमामे संवत १५६५-७० ई. स. १५०९-१५१४) ना अरसामां थयो हशे; एम अनुमान करी शकाय. वळी एमनी संवत् १६४३ [ई. स. १५८७) नी 'ऋषिदत्तारास' नामनी कृति मळे छे एटले तेओ संवत् १६४३ (ई. स. १५८७) सुधी तो अवश्य विद्यमान हशे ज. आ बधा परथी एमनो जीवनकाळ संवत १५६७ थी १६४३ (ई. स. १५५१ थी १५८७) सुधी लगभग ७६ वर्ष ना आंकी शकाय.
कवन
उपर नेांध्यु तेम संवत् 1५९९ थी १६४३ ( ई. स. १५४६ थी १५८७) सुधीना लगभग ४४ वर्षना दीर्घकाळ पर्यन्त लेखन-कार्य करनार आ कविए अनेक ग्रथो लख्या हशे. पण हाल तो आपणने एमनी मात्र बारेक कृतिओ उपलब्ध थाय छे. संभवित छे के केटलीक कृतिओ अमुक ग्रंथभंडारमा ज हजी अज्ञात रीते पडी रही होय. कविनी अमुक ग्रंथोनी संख्याबंध हस्तप्रतो जुदा जुदा स्थळ अने काळनी मळी आवी छे. ऐ बतावे छे के ए समये कवि खूब लोकप्रिय हशे. एमनी काव्य कळानी दृष्टिए सर्वोत्तम गणी शकाय एवी 'शृगारमंजरी" अथवा " शीलवती चरित्ररास' नामनी कृतिनी पांच-छ हस्तप्रतो संवत १६३९ थी (ई. स. १५८३ थी ] आरभीने संवत् १७४० [ई. स. १६८४] सुधीना लांबा काळ पर पथरायेली मळी आवे छे. जे कविनी पछीना काळनी लोकप्रियतानुं द्योतक छे “ रूषिदत्तारास'' नामनी बीजी एक कृतिनी लगभग सत्तरथी वधु जुदा जुदा स्थळ अने काळनी हस्तप्रतो मळी आवी छे आ पण कविनी लोकप्रियता दर्शावनारु लक्षण छे..
कृतिओ
१. शृंगारमंजरी-शीलवतीचरित्ररास
'शंगारमंजरी' अथवा 'शीलवतीचरित्ररास' ए कवि जयवंतसूरिनी सर्वोत्तम कृति छे. मध्यकालीन गुजराती भाषा, साहित्य, समाज अने संस्कृति अंगे मूल्यवान सामग्री एमांथी प्राप्त थाय छे, ते दृष्टिए पण ते नेधिपात्र छे. [आ कृतिनी अधिकृत वाचना अने अध्ययन अत्रे रजु कर्या हवाथी एनी समीक्षा अत्रे प्रस्तुत नथी.)
१ डॉ. भीगीलाल ज. सांडेसरा, वीरसिंहकृत 'उषाहरण'ना पोताना संपादनमां-'हरिवंश अने भागवत
परथी रचायेला गुजराती काव्यो"मां जयवंत पंडित कृत 'नेमी राजुल बारमास वेल प्रबंध'नी रचना साल संवत १६१४ होवार्नु जणावे छे. -जुओं वीरसिंहकृत उषाहरण, संपा. श्री. भे। जे. सांडेसरा, मुंबई, १९३८, पृ. २७८.
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