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________________ ९४ Jain Education International जयवंत सूरिकृत प्रेम-नदी परगट करी, गौरीं अंसु-जलेण, तेनइ पंथइ चालतां, दुखितरी प्रियेण ११७५ पंथी पंथइ चालतां, उडणि लागी खेह, गोरी गुण संभारतां नयणे वूठउ मेह. १९७६ फटि रे नीठर जोवडां, पंजरि बद्धउ कांइ, गोरी मेहली चालतां, हजोअ न उडी जाइ पंजरी-बद्धउ जीवडु, कंडु किम उडी जाइ, जिहां जड दीधी प्रेमनीं, किमहि न ढीली थाइ. ढाल २२ राग देशाख ११७७ ११७८ (ओ पे घर माहरु, कांहान आवु तु देखाडु, ए देशी) [तथा शत्रुज्य जुहारस्यइ रे, तेहनइ दूर गति नहीं रे लगार, ऐ देशी] नयनां जलधर दोइ जडिलाया. बोल न एक बोलाया, गोरी पासई जीउ भलाया, भींतरि विरह जलयाजी. १९७९ पंथी • चलाया, पंथीडा लै पंथी पलाया, नयने नीर विरह-दवानलि अति अकलाया, जब गोरो मोकलायाजी. ११८० पंथी • हैडा भतरि दुख न समाया, आंसू नीर न माया, दोहिली प्रेम तणी छइ माया, जाणइ जेणि कमायाजी. १९८१ पंथी ० गुण संभारो साल सलायां, पापी मोर कलाया, परि परि पंथ चलंत खलोया, गोरी सिउं जीउ लायाजी १९८२ पंथी ० सान विना सूनी भमइ काया, चेतन चित्ति गमाया, न गमइ शीतल सरली छाया, हैडा दुखि भरायांजो. १९८३ पंथी ० दुखि जीव रहिया झंपाया, विरहिं तनु कंपाया, नगमइ चंदन शशिर उपाया, सुख तिणि खिणि नवि पायाजी. १९८४ झूरी झरी अति तनु करमाया, पंथ अनीठा थाया, राति दिवस का छेह न आया, चिंताचित मुंजायाजी. ११८५ षंथी ० सरत वीसरी न जाया, जे अविहड नेह लाया, लाइ प्राण घर एकाया, मन भींतरि गुण धायाजी. ११८६ पंथी० For Personal & Private Use Only ए किरतार कुबुद्धि जाया, पापी विरह उपाया, अक्षर लिखतां कर न दुखाया, मानव-भव विणसायाजी. ११८७ पंथी ० www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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