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जयवंत सूरिकृत
प्रेम-नदी परगट करी, गौरीं
अंसु-जलेण,
तेनइ पंथइ चालतां, दुखितरी प्रियेण ११७५
पंथी पंथइ चालतां, उडणि लागी खेह, गोरी गुण संभारतां नयणे वूठउ मेह. १९७६ फटि रे नीठर जोवडां, पंजरि बद्धउ कांइ, गोरी मेहली चालतां, हजोअ न उडी जाइ पंजरी-बद्धउ जीवडु, कंडु किम उडी जाइ, जिहां जड दीधी प्रेमनीं, किमहि न ढीली थाइ.
ढाल २२
राग देशाख
११७७
११७८
(ओ पे घर माहरु, कांहान आवु तु देखाडु, ए देशी)
[तथा शत्रुज्य जुहारस्यइ रे, तेहनइ दूर गति नहीं रे लगार, ऐ देशी]
नयनां जलधर दोइ जडिलाया. बोल न एक बोलाया, गोरी पासई जीउ भलाया, भींतरि विरह जलयाजी. १९७९ पंथी •
चलाया,
पंथीडा लै पंथी पलाया, नयने नीर विरह-दवानलि अति अकलाया, जब गोरो मोकलायाजी. ११८० पंथी •
हैडा भतरि दुख न समाया, आंसू नीर न माया, दोहिली प्रेम तणी छइ माया, जाणइ जेणि कमायाजी. १९८१ पंथी ०
गुण संभारो साल सलायां, पापी मोर कलाया,
परि परि पंथ चलंत खलोया, गोरी सिउं जीउ लायाजी १९८२ पंथी ०
सान विना सूनी भमइ काया, चेतन चित्ति गमाया,
न गमइ शीतल सरली छाया, हैडा दुखि भरायांजो. १९८३ पंथी ०
दुखि जीव रहिया झंपाया, विरहिं तनु कंपाया, नगमइ चंदन शशिर उपाया, सुख तिणि खिणि नवि पायाजी. १९८४
झूरी झरी अति तनु करमाया, पंथ अनीठा थाया, राति दिवस का छेह न आया, चिंताचित मुंजायाजी. ११८५ षंथी ० सरत वीसरी न जाया, जे अविहड नेह लाया,
लाइ प्राण घर एकाया, मन भींतरि गुण धायाजी. ११८६ पंथी०
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ए किरतार कुबुद्धि जाया, पापी विरह उपाया, अक्षर लिखतां कर न दुखाया, मानव-भव विणसायाजी. ११८७ पंथी ०
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