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________________ (६१) हेत्वर्थ कृदन्तमा बूजविवा (५१७), पामिवा (५१८), वधारवा (६२४) चलवा (८२५) त्यजवा ( १७५४). प्रीसवा (१८१३) लिखवा (२१६६ ). विध्यर्थ कृदन्तमां छोड्वु (६८८), उल्हवुं (१०४७), वीनवूं (६४९), मानवु (६६९), मढाबू (२२६३) इत्यादि मळे छे. संबंध कृदन्तमां नमी ( ९ ), वीनवो (६९). अमीय (४६४), वंकीय ( ५६३), सुणीय (५९५), सुखीय (११३९), मंत्रीय (१२५४) जेवा रुपो मळे छे. आ उपरांत वधारानो अनुग 'नइ' लागीने थयेलां रूपो पण मळे छे. करीनइ (६१), लहीनइ (६४३), भरीनइ (६३५), आवीनइ (६५०) 'अण'वाळा क्रियावाचक कृदंतने ह+कार > आर लगाडीने कतु वाचक नाम बनावाय छे. उ. त. चालणहार (८३५), सींचणहारा (८६७) कारणहार (१४५९), ऊडणहारा (८९८ ) मागणहारा (१७५० ). अव्ययोमा क्रियाविशेषण, भूमिकामां ठीक प्रमाणमां छे. अव्यय नामयोगी, उभयान्वयी अने केवलप्रयोगीना बिकास आ क्रियाविशेषण अव्यय स्थलवाचक : जां, जिहां, तिहां, उपरि, दूर, दूरि, तिहांथी, किहांथी, तां. कालवाचक : हवड, हवि, हवडाडइ, हवइ, जवथी, तवथी, आगइ, जव, तव, आगि, आज, जाम, ताम, केवार, केवारई, पुणरवि. अहनिसि, सदा, वारंवार, पछइ, तिणिवारी, जेणिवार, जिहारइ. रोतिवाचक : जिम, तिम, जं, त, इम, क्रिम, एम, किमइ, परि, परिपरि, वेगिरि, इणि परि, एणि परइ, सहजइ. कारणवाचक : कां, कांइ, किम, कांइ, के इ. निश्चयवाचक : निटोल, निश्वइ, सही. नकारवाचक : ना, न, नहीं, नवि, म. संशयवाचक: कि, किरि, रखे, जाणे, जाणि. नामयोगी अव्यय स्थलवाचक : पासि, वरि, उपरि, मझारि, लगई, मांहि, मांहइ, मांहई, प्रति, भणि कालवाचक : आगलि, पाछिली, आगई. सहितार्थक सिउ सहित, साथि रहितार्थक : विण, पाखइ, विना तुलनावाचक: समान, पहि, पांहि, समाण, साधनवाचक : थिकी, करी. Jain Education International सरसी. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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