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________________ (६०) भविष्यकाल-कर्तरि पुरुष ए.व. भ ब.व. देखसिउ, पालेसिउ करसिउ, आसिसि, मिलिसि, वखाबिउ' २ जो - कहसि, करसि, वरससि, जाएसि ३जो अहिसइ, सूकरइ, लाजसइ, फलसिइ आज्ञार्थ शुद्ध आज्ञार्थ : बी.पु. ए.व.-भेलि, करि, झूरि, समरि, महेलि ____बी.पु. ब.व.-आपु, जोउ, सुनु, कहु, सुणु भविष्यार्थ आज्ञार्थ ; बी.पु.ए व.-हजे, वाधजे बी.पु.ब.व.-बूलयो, पधारया, सींचयो, राचया, खमयो. (संभव छे के उच्चारण 'ज' होय,) भविष्य : म आणसि (५३१), म बईसि (६७८), म बंछसि (१८७), म घरसि (८०३), म उमजसि (१७४५), म उतारसि (२२४४). क्रियापद (प्रेरक) 'आव' प्रत्यय : वजावइ (५४१). नचावइ (५७६), ठमकावइ (५७६), चडावि (६९१), महेलावि (७९१), सभावि (६९२) 'आड' प्रत्यय : उडाइइ (५८०), कडुआवीया (८३१), बोलावीया (९४७), मायावीयां (१३०९), रीसावियां (१३०), लजाविया (१३५६). कृदन्त कृतिमा वर्तमान, भूत, संबंधक अने हेत्वर्थ कृदन्त मळी आवे छे. वर्तमान कृदन्त मां कहितु (८), अवटातु (१४०८), कांपतु (१५६९), रुचतु (१८३१), एकबचनमां अने भमता (२२८), चालता (७९३) सुणतां (१३४), धरतां (१७०), हीडतां (९२३), समरतां (८९६) बहुवचनमां मळे छे. ___ आ उपरांत संस्कृत 'अन्त' [एनुं निर्बळ स्वाप 'अत्'] मांथी प्राकृतमा विकसेला 'अन्त' अंगथी बनेला चलती (१), झरता (२०५) करतां (१८) झूरता (२९) रुप ठीकठीक प्रमाणमां मळे छे. संस्कृत कर्मणि रुप बनावता 'य'ना विकास 'इ' केटलांक वर्तमान कृदन्तनी पूर्व आवी मळया छे. उ. त, बीहेतु (५८०), कहीतां (८३३). भूतकृदन्त मां दीठउ (४२२), पइठउ (१८२४), जालिउ (५५४). वसीउ (४५१), पूरीउ (२३७३) पुलिंग एकवचन अने बइठा (१९३), तूठा (११३९), परिभव्या (३०१), भम्या (१८५) दाखव्या (१४१०) पुलिंग बहुवचनभां मळे छे. नपुंसकलिंग एकवचनमां सुणउ (७२१), छेदिउ (२८). करिउ (३६३), लहिउ (२३७९). कीधू (६४५), खाधू (१०९०), वंचीउ (५९८), टालीउ (२१२९), वल्धु (१८१), कीधु (५७७), लीधां (६४), कीघां (६४). लाघां (१०३९), पइठां (४६२), बइसतां (१३६३) जेवां रूपो मळे छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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