________________
११०
Jain Education International
जयवंत सूरकृत
नयां वयणां दुन्नि जण, नेह-रस लेइ जाइ, काया कूचा कारण, ताडु नयणे वयणे जेह सेजि न पहुरमां, जनम लगइ
रस,
उ रस खटुकइ
कीजइ कांइ. १४४०
हुइ सोइ, रहि दोइ . १४४१
नयणे वर्याणि मिलंति, तुहइ तृपति न जंति. १४४२ संगम नवि |इ
मेह न वंछइ तोय. १४४३
माणसां,
सही सुवेधां अंगो अंगि मूरिखां, नयन मिलति जेह रस, मोर जि नाचइ गाजतां, अणदीठि आरति नहीं, दीठिं दुःख शरदी बप्पीहा मेह जिम. ए दृष्टि-वेधे जे नयणे दीठां नथी, नाम सुणइ देहइ नेह, वेघडु, जिम जल मांहि लेह. १४४५ गयांइ,
भराइ, कहाइ. १४४४
अवर न कोई सुहाइ. १५४६
कुंजर
ते
अदृष्टह
नेह सलूणां सज्जनां, परदेसडइ तस गुण खटकड़ साल जिम, विज तणा गुण समरतु, तिम गुण खटकइ जेहना, गुण अवगुण जाणइ नहीं, वेसा पणि तस वल्ल्ही, नयणां वयणां गुण तणा, चतुर तणा ए वेघडा, विरला दृष्ट अदष्ट नइ विषयना, बि खोठा एक पक्षना,
त्रणे वेध
त्रीजउ
लहइ
कुंजर थाइ, गुण-वेध कहाइ. १४४७
सुरय-रसेण,
ए हीण. १४४८
केवल
विषय- वेध रुडा वेध जि सोइ,
जाणइ कोइ. १४४८
स्त्री नई विरह विरला विगत
असार,
गमार. १४५०
दहेइ,
लहेइ. १४५१
वेध अधिक नर नई दहइ, विरह मिलिं वेद अणमिलि, निस-नेहां सिउं नेहडु, मुरख
सरसी प्रीति,
ठां साल तणीं परि, खिणि खटकइ चिति. १४५२
भूख गइ निद्रा गइ जउ ते गोरी नवि मिलइ, जे दोहिलां दुर्लभ हुई, वाडी पहुरु पाडता, रांजा अधिकूं सिउं करइ, रूठउ
हरेइ,
प्राण
ते तु बिपरई जसइ, जइवि न मिलेइ मिलइ. १४५५
For Personal & Private Use Only
सुपरि करइ विनाण, तु जीवित सु प्रमाण. तिहां मनि अधिक उल्हास, सूडु करइ विखास. १४५४
१४५३
www.jainelibrary.org