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________________ १३० Jain Education International प्रीति विछोडी सुगुण सिउँ, घर बाली कीरति करइ, जेविण जीवन रही सकइ तिहां मिलीइ सुवार, जोंवित कइ जण वल्लहां, हैडइ जोउ विचारि. १७६६ जयवंत सूरिकृत कुण राखइ लोक - लज्ज, ते मांणसडां अकज्ज. १७६५ दुरियन बोली न नेह टलइ, कांइ अधिकेरु थाइ, छासि संयोगि दुध जिम, दहीं रस अधिक सघाइ. १७६७ उत्तम वाघइ नोंच टलइ, दुरियन वचन सनेहि, वाइ उल्हाई दीवडर, अगनि अधिकेरु थाइ १७६८ जिम जिम दुरियन आवटइ, जिम जिम विदद्य लोय, तिम तिम सजन सनेहडु, अधिक वधारइ लोय. १७६९ दोखी नेह वित्रोडवा, अछता बोलइ दोस, उत्तम दुरियन बोलडे, हैउइ नाणइ रोस. १७७० दोखी लाख गमे लवइ, तुइ हूं वाहिडू नहीं, लोक हसइ जो कोडि, वाहाला नेह विछोडि १७७१ किमहि कुलाचल कंपीइ, सायर-जल सूकंति, तुहइ उत्तम बोलथी, न चलइ नागपाश बंधन थिकी, लोह - सांगलथी वाचा -बंध कुलीन निं, न चलइ जां बोलडे इम सार्थपति, पाम्यु घर जातां सुंदरि कहइ, जीव- प्रयंत. १७७२ अति वाहाला सुणि नेह स तु नीर तणी अहीय, हुइ जीव १७७३ आनंद, नेह - कंद १७७४ वहिला वली पधारयो, माया घरयो चिति, वरस समाणी अघ- घडी, तुण विण थासइ मित्त. १७७५ थापिणि महेलु जेहनी, बाधा आवु मित्त, मन-मणि मेहलिउं तुज कन्हई, गोरी जाणे नित्त. १७७६ मुज मनि राखिडं गरहणइ, सज्जन तुहइ धूरत, तु मन-मणि अहां मेहलीउं, मई जाणी तुण वत्त. १७७७ विसिउ, घणउ न जाणउं झंखि, तरसालूया, आपई आवइ For Personal & Private Use Only पंखि १७७८ www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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