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________________ १०० Jain Education International काल- मुहा गाजइ गूज - जल लेइ जोइ छिद्र दूरियन मुहुडइ दीसीता ग मनि घरइ जयवंत सूरिकृत घणउं, दूरियन वीखरइ, सुजन मोहा समुद्र के वि, नमेवि. १२६३ पीआरडi, दो-जीहा अति वंक, साप सरीसडा, पगि पगि देह विखडंत १२६४ समा, पूछि बिख वहति, आंकडु, दूरियन वींछों ह ंति. १२६५ मिल्यां, अनि तेहनिं न मिलति, देखी न सकइ दो नेह त्रोडइ भाजइ मिल्यां, पग पग नींच दहति १२६६ लेति, दूरियन साहिजि सदोखीयां, दोख पीयारा वीज पडु ते दुरियडा, फोकट वइर वहति. १२६७ काजि न आवइ कंटकीं, दुरियन बाउल एह, आडई आवी वारइ वली, सुज्जन मोहा-तरु जेह. १२६८ नीलक जाल सामलूं, दुरियन वयण अनिद्ध, भिउडी भीसण रोस भरि, कलीअ न विहसिउ दिद्ध. १२६९ मज्झि वंका दो मूही, लोहमया जय लोइ, नह स नेह विछोह कर, नरहिणि दुरियन होइ. १२७० जां मूहि भोजन तां मधूर, ते विण दुम्ह अइ अकुलीण नर, दुरियन जे नवि नयणे दीसीइ, सुहुणइ जनमंतरि जे नवि हवइ, दुरियन दुरियन के सूका - तरुनी संगति, सज्जन संगति, दाइ बोलडा, अछ कठिन सरोस, बामणा, अहि जिम नयण सदस. १२७४ दुरियन केरा सीता हंसा थोडा बग घणा, विरला सज्जन लोक, सुखी थोडा दुखी घणा, पगि पगि दुरियन थोक. १२७५ दुरियन विसहर विस-दमणि, मणि जउ जीहा यमलिं डंकीउ, तु जग दुरियन जनसेवक बलि, कलियुग अजुवि सज्जन केवि छइ, कृतयुग हरिणां वइरी पारधी, माणस सज्जन वइरी नीच जन, विरही नींरस थाइ, मुरज सहाय. १२७१ चिति न होइ, जांपइ सोइ. १२७२ पामइ दुखु, नीला - रुखु. १२७३ सज्जन नहत, किम रहंत. १२७६ माणसि मान, तणा प्रधान. वइरी नेह, वरी For Personal & Private Use Only १२७७ मेह. १२७८ www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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