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गारमंजरी
साकर दूधइ स्युं मिली, सोनु हQ सुगंध, जे ऊपरि मनडुं हतुं, ते ससनेहा बंधु. १७१३ आगइ वाहाला सुजन ते, अनइ वली मधुर बोलंति, आंबा लागा इखूइ, कहु कुण मूल करंति. १७१४ नीर जिम नवइ सिरावलइ, पसरी एक-रस हाइ, चितिं चित्ति मिली गयु, अंतर न लहइ कोइ. १७१५ कहिसिउं क्षणमां मन मिलइ, कहिसिउं नहीं सवासि, डुडर न वेइ कमल-गुण, भमरु लि गुणवास. १७१६ गोरी गुण-गढ भेलता, नयणे दीधु भेलि, हैडइ मारग अप्पीउ, भांजी लज्जा-पोलि. १७१७ पूरब-कर्म तणइ वसइ, तेहसिउं बाघु जीव, अनंग तणी आशा फली, विलसइ भोग सदेव. १७१८ जीवी तास वखाणीइ, घन घन सघन अनंग, दर्शन-दुर्लभ सुंदरी, विलसी जेणइ चंग. १७१९ सूडा ते फल चाखीइ, जे फल कुणहि न लब्ध, वरि मरवू एक जि वरां, जेणिं रहइ लोक-प्रसिद्ध. १७२० कदम लंखी जल तरी, भेदी कंटक--वाडि, हंसा विलसइ कमल सिंउं, नेहई किसिउ असाध्य. १७२१ भमरु केतकि सिउं रमइ, कांटे तनु वधाइ, मन रच्चतां वल्लहां, दोस न को देखाइ. १७२२ जेहसिउं रूडा भावीइ, चतुर वखाणइ च्यारि, वरि ते सज्जन कारणइ, सहीइ बोल बि-च्चारि. १७२३ भमर ते फूलइ रच्चीइ, जिहां गुण दीसइ दोइ, लोक प्रशंशइ जेहथी, आप सवारथ होइ. १७२४ हंसा कइ मानसि रमइ, कइ तरसिया मरंति, छीलरडे कद वालूए,, साहा पणि न जोअंति. १७२५ मिलीइ तु गुणवंत सिउं, जीह प्रसंसइ लोय, निरगुण नीचह सिउ मिली, जनम विणासइ कोइ. १७२६ अमृत वरि टीपू भलूं, नहीं बिस-कूआ विरस, वरि अध-घडली सगुण सिउ, नहीं निर्गुण सिउ वरस. १७२७ तं काइ कीजइ नवू , जिण रहइ लोकप्रसिद्ध, . हरि-हर ब्रह्मा सिर घुणइ, हुइ कारय सिद्ध. १७२८
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