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[७२] प्रभुश्रीके परमप्रेमी, तन-मन-धनसे सर्वप्रकारसे सेवा करनेवाले और आश्रमकी स्थापनामें मुख्य कार्यकर्ता तथा आश्रमके उत्कर्ष एवं व्यवस्थामें अपनी सर्व शक्तिका भोग देनेवाले, परमकृपालुदेवके उपासक तथा अनेक मुमुक्षुओंको प्रभुश्रीका माहात्म्य बताकर उन्हें प्रभुश्रीके प्रति मोड़नेवाले नारके श्री रणछोड़भाईका पुरुषार्थ प्रबल था। संतकृपासे उनका क्षयोपशम, समझानेकी शक्ति तथा प्रभाव ऐसे अद्भुत थे कि सब कोई उनके वचनोंसे आकर्षित होकर मुग्ध हो प्रभुश्रीके चरणोंमें ढल पड़ते थे। परंतु इसका परिणाम यह आया कि परमार्थमार्गके अनजान भोलेभाले जीव अपने-अपने कुलसम्प्रदायको छोड़कर यह मार्ग सच्चा लगनेसे उसकी ओर आकृष्ट तो हुए किन्तु ज्ञानीकी पहचान नहीं होनेसे अपने सम्प्रदायके रहे सहे कुछ संस्कारवश अथवा देखादेखी सब श्री रणछोड़भाईको भी प्रभुश्री जैसे ही उपकारी ज्ञानी मानकर उनकी भी ज्ञानीके समान ही विनय करने लगे।
महापुरुषोंकी उदात्तताकी झाँकी करानेवाली कुछ घटनाएँ उनके जीवनमें घटित होती हैं तब साधारण जनसमुदायको उनके निःस्पृह व्यक्तित्वकी कुछ पहचान होती है। सं.१९८० के पर्युषण पर्वमें पूनामें कुछ भाइयोंने श्री मोहनभाईको (प्रभुश्रीके पुत्रको) बुलाकर प्रभुश्रीजीकी अनुपस्थितिमें उनकी गद्दीपर बैठनेको कहा, पर उन्होंने मना कर दिया। तब उन लोगोंने उन्हें बलपूर्वक खींचकर बिठा दिया और मंगलाचरण करके भक्ति की। प्रभुश्रीजीको जब इस बातका पता चला तब दूसरे दिन उनका पुण्यप्रकोप यों जाग उठा
___ "इसे क्या कहा जाय? क्या स्वामीनारायणकी भाँति संसारीको गद्दीपर बिठाकर संन्यासी उसे नमस्कार करे ऐसा मार्ग चलाना है? क्या मार्ग ऐसा होगा? अनन्त संसारमें भटकनेका कारण ऐसा काम कैसे सूझा? तुममेंसे भी कोई नहीं बोला? इस गद्दीपर पाँव कैसे रखा जाये? हम भी नमस्कार कर उसकी आज्ञासे बैठते हैं, वहाँ यों स्वच्छंदपूर्वक ऐसा करना क्या उचित है?...उसे बलपूर्वक दबाकर बिठाया इसमें उसका क्या दोष? पर किसीको नहीं सूझा कि ऐसा कैसे हो सकता है?" दूसरे दिन स्तवनमें जब
१"धन्य ते नगरी, धन्य वेला घडी,
मातपिता कुलवंश जिनेसर।" यों गाया गया तब फिरसे उस घटनाको लेकर कहा
"इसमें क्या मर्म समाया है? इन पंक्तियोंको लौकिक बातमें समझना है या अलौकिक रीतिसे? कुलवंश और संबंध ये सब क्या इस शरीरके? ऐसा तो सब संसार कर ही रहा है। यह तो समकितके साथ संबंधकी बात है, और सम्यक्त्वसे प्रगट हुए गुण सो वंश है। देखो, पीढ़ी ढूँढ निकाली! प्रभु, यह तो इनका योगबल है सो इस स्थानका देव जागेगा तब होगा... ___ हम तो अज्ञातरूपसे (गुप्त) जड़भरतकी भाँति विचरते थे। वहाँ इसने (रणछोड़भाईने) भण्डा फोड़ा (प्रसिद्धिमें लाये)। ऐसे कालमें इसकी सेवा-भक्तिके कारण सन्तके मनको शांति मिली उसकी दुआसे यह जो कुछ है सो है। परंतु इस कालमें पचाना कठिन है...
ज्ञान तो अपूर्व वस्तु है। (परमकृपालुदेवके चित्रपटकी ओर अंगुलिनिर्देश कर) हम तो इनकी शरणमें बैठे हैं... १. उस नगरीको, उस समयको, उन माता-पिताको, उस कुल और वंशको धन्य है जहाँ भगवानने जन्म लिया।
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