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उपदेशामृत गुरु नमीए गुरुता भणी, गुरु विण गुरुता न होय; गुरु जनने परगट करे, लोक त्रिलोकनी मांय. १० गुरु दीवो गुरु देवता, गुरु रवि शशी किरण हजार; जे गुरु वाणी वेगला, रडवडिया संसार. ११ तनकर मनकर वचनकर, देत न काहू दुःख; कर्मरोग पातिक झरे, निरखत सद्गुरु मुख. १२ दरखतसें फल गिर पड़ा, बूझी न मनकी प्यास; गुरु मेली गोविंद भजे, मिटे न गर्भावास. १३ गुरु-गोविंद दोनुं खड़े, किस. लागूं पाय! बलिहारी गुरुदेवकी, जिने गोविंद दिया बतलाय. १४" "जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत; समजाव्युं ते पद नमुं, श्री सद्गुरु भगवंत. १५ परम पुरुष प्रभु सद्गुरु, परम ज्ञान सुखधाम; जेणे आप्युं भान निज, तेने सदा प्रणाम. १६ देह छतां जेनी दशा, वर्ते देहातीत; ते ज्ञानीना चरणमां, हो वंदन अगणित. १७ पडी पडी तुज पदपंकजे, फरी फरी मागं ए ज; सद्गुरु संत स्वरूप तुज, ए दृढता करी दे ज. १८" विश्वभावव्यापी तदपि, एक विमल चिद्रूप; ज्ञानानंद महेश्वरा, . जयवंता जिनभूप. १९
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सीमरडा, ता.२१-९-१९, सं.१९७५ आपके पत्रमें लिखे अनुसार आपकी पत्नीके देहावसानके समाचार मिले। कलिकालकी यह शरारत लगती है। यह कलिकालकी कुटिल वर्तना है। मनुष्यभव पाकर आत्मज्ञान हो ऐसी श्रद्धा इस मनुष्यभवमें ही होती है। वह जीवात्मा, छोटी उम्रमें देहत्याग होनेसे क्या साथ ले गया? यह खेद करनेकी बात है। परमकृपालु प्रभु उनको शांति समाधि प्रदान करें, उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हो यही प्रार्थना है।
३८ सीमरडा, ता.१-१०-१९,सं.१९७५ हे प्रभु! धैर्य, शांति, समाधि यह जीवको आराधन करने योग्य है जी।
१"जेम निर्मलता रे रत्न स्फटिक तणी, तेमज जीव-स्वभाव रे;
ते जिनवीरे रे धर्म प्रकाशियो, प्रबल कषाय अभाव रे." १. जिस तरह स्फटिक रत्नकी निर्मलता होती है, उसी तरह जीवका स्वभाव है। जिनवीरने प्रबलकषायके अभावरूप धर्मका निरूपण किया है।
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