Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 591
________________ ४९४ उपदेशामृत परिशिष्ट ६ विषय-सूची (विषयके सामने दर्शाये हुए अंक पृष्ठ संख्या सूचित करते हैं) अनर्थदंड ४०७ कषाय २७८, ३६०; °सुलटे करे ४१९ अनंतानुबंधी कषाय ४३७ कांक्षा २८३ अनुप्रेक्षा ४० क्षमा २२४ ० भोग लेना ३१ अप्पा कत्ता विकत्ता य १६९ खामेमि सव्व जीवे ११४ अरिहंतो महदेवो १६३ गुरुगम १४७, ४११ अहमिक्को खलु शुद्धो ११४ चमकमें मोती पीरो लें ४४३ आज्ञा ४५, ५१, ३३१, ३६०, ०के प्रकार ४७० | चत्तारि परमंगाणि ११४ आत्मसिद्धिशास्त्र १०१, १३०, १३३, ३५९, | चार गति दुःखमय ४०८ ३६१, ४७३ | चित्तप्रसन्नता २१ आत्मा-भावना २८, ३३, विचारणा १४२; ही | चोर ३५१ सर्वस्व ९१; ० की अधमदशा विचारणीय ११८, | छत्तीस मालाका क्रम ३२९ देखो अर्थात् क्या? १८३ ०शुद्ध सिद्ध समान | छ पदका पत्र १९१, २७२, ३६१ ३४७, ३५०; ज्ञानीपुरुषका प्रकट चोर ३५१; | जिणवयणे अणुरत्ता ५७, ५९ •का माहात्म्य ३७८, ३८२; ०का ध्यान ४०८; | जितेन्द्रियता ११७ के लिये सब करें ४१०, प्रथम ४२४; कैसे | जुगार १०९ प्राप्त हो? ४२७; कहाँ रहता है? ४३४; की | ज्ञानी का स्वरूप ४२०, ०और अज्ञानीकी वाणीमें प्रतीति ४४१ भेद ४१४ आलोचना ३०१ झाइ झाइ परमप्पा ११४ आवश्यक ३०६ तीन पाठ ३०४, ३७०, ३९२ आश्रम- आशातना अशुचिसे बचे २६२, ०का | तीन शल्य ३४२ माहात्म्य २६५, ४१८-९, ०वीतरागमार्गकी | दान ३२५ पुष्टिके लिये ४६८ | दीवालीका बोध ३५० आसिका ३०७ 'दुनिया' का अर्थ ३५ इक्को वि नमुक्कारो १८० 'दुर्जननो भंभेर्यो मारो नाथ जो' २५६ उत्सूत्र प्ररूपणा २५९ देवता २५७ उदासीनता और उपेक्षा २७४ देववंदन १८४, १८९, ३७८ उदीरणा २९० | देह-मूर्छा अकर्तव्य ४०६, ४१७, ०में सार क्या? एक परमकृपालुदेव ५८, ६९, ८५, ८९, ९६, ४७२ १२७, १३१, १३४, २९५, ४०५ द्रष्टाभाव ६, ३३, ४६ एगो मे सस्सदो अप्पा १६३ 'धन्य ते नगरी धन्य वेळा घडी' २६६ एगोहं नत्थि मे कोइ १६३ नमस्कार ४२४ कल्याण १६, कैसे हो? २९० नासिकका बोध ३८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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