Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 590
________________ ४९३ परिशिष्ट परिशिष्ट ५ वचनामृत-विवेचन वचनामृत पत्र संख्या विवेचनका विषय २/७ भक्तिकर्तव्य और धर्मकर्तव्यमें भेद १७/३४ 'नीरखीने नवयौवना' काव्यका अर्थ १७/६७ 'बहु पुण्यकेरा पुंजथी' १७/१०० 'लक्ष्यकी विशालता'-एक भी उत्तम नियम साध्य न करना २१/१ यह तो अखंड सिद्धांत मानना कि... २१/९१ अभिनिवेशके उदयमें उत्सूत्रप्ररूपणा न हो... उपदेशामृत पृष्ठ संख्या २५८ २४१ २२२ २८० २६१ २५९ ३७ २१४ ११७ १९९ ४० विशालबुद्धि, मध्यस्थता, सरलता, जितेंद्रियता ७६ सत्पुरुष यही कि निशदिन जिसे आत्माका उपयोग हो... ११७ इस पावन आत्माके गुणोंका क्या स्मरण करें? १६६ किसी भी प्रकारसे सद्गुरुकी खोज करें... १६६ अनादिकालके परिभ्रमणमें अनंतबार शास्त्रश्रवण... २०० शास्त्रमें कही हुई आज्ञाएँ परोक्ष है... २६५ 'मुख आगल है कह बात कहे' २८३ भगवान मुक्ति देनेमें कृपण है... ३२१ अत्यंत उदास परिणाममें रहे हुए चैतन्यको... ३७३ मनके कारण यह सब है.... ४३० कोई भी जीव परमार्थको मात्र अंशरूपसे... ४३२ आत्माको विभावसे अवकाशित करनेके लिये... ५३९ सब जीव आत्मारूपसे समस्वभावी है... ५६८ विशेष रोगके उदयसे अथवा शारीरिक मंद बलसे... ६७० ज्ञानीका सर्व व्यवहार परमार्थमूल होता है... ७१८ गाथा ११५-६-७ का अर्थ तथा माहात्म्य ७१८ गाथा १३० 'करो सत्य पुरुषार्थ' ७५३ जो स्वरूपजिज्ञासु पुरुष है... ७६७ ७८३ सत्पुरुषका योग मिलना तो सब कालमें... ८१० जो अनित्य है, जो असार है और... ८१९ ॐ खेद न करते हुए शूरवीरता ग्रहण करके... ८४३ श्रीमद् वीतराग भगवान द्वारा निश्चितार्थ किया हुआ... ९३५ चक्रवर्तीकी समस्त संपत्तिकी अपेक्षा... उपदेशछाया वेदांतमें इस कालमें चरमशरीरी उपदेशछाया छ खंडके भोक्ता भी राज छोड़कर चले गये... ९६०/१४ 'होत आसवा परिसवा' काव्यका अर्थ २७६ १६७ १६९, १७४ २७२ १८८ २५९ २१२ २७५ १७६-१७७ १७९ १५३ १७२, १७३ ३७७ ३५५ १८७ १८१ २७७ २०६ ४१२ २२१ २१७ २०९ २२६ २४४ ३५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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