Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 588
________________ १० २५ १२ २५६ ६७ परिशिष्ट ४९१ व्रत नहीं पचखाण नहि नि.पा.१०८ , सहु साधन बंधन थया नि.पा.२६ शास्त्र घणा मति थोडली २१३ | संजोगमूला जीवेण १६३ शुं प्रभु चरण कने धरूं? नि.पा.२४१ | संजोगा विप्पमुक्कस्स १५५ शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन नि.पा.२३२ | संग परिहारथी स्वामी निजपद ११३ षट्स्थानक समजावीने नि.पा.२४५ | संतचरण आश्रय विना नि.पा.२६ सद्गुरुना उपदेशथी नि.पा.२३५ | संशय तेने शानो रह्यो सद्गुरुना उपदेश वण नि.पा.१४७ | संसारीनुं सगपण छोडी (६४) समकित साथे सगाई कीधी १७२ साचे मन सेवा करे २५, ३९ सज्जन सज्जन सौ कहे २३ | सुख दुःख मनमां न आणीए ४५७ सज्जनशुं जे प्रीतडीजी (२९)| सेवे सद्गुरु चरणने नि.पा.१४४ सद्गुरुचरण जहां धरे २५ | सेवाथी सद्गुरुकृपा सद्गुरु पद उपकारने ४४ | सेवाबुद्धिथी सेवना सद्गुरु सम संसारमा ११ | हारे दिलडु डोले नहि (पूरा काव्य) समभावे उदय सहे ४४ | हारे प्रभु! दुर्जननो भंभेर्यो समकिती रोगी भलो ७६ | हुं माझं हृदयेथी टाळ १३१, २०४ समतारसना प्याला रे पीवे ४१६ | हुं कोण छु? क्यांथी थयो? नि.पा.१३० सर्व जीव छे सिद्ध सम नि.पा.२५८ | होय न चेतन प्रेरणा नि.पा.१९३ सर्वज्ञनो धर्म सुशर्ण जाणी श्री.रा.३९ | होवा- जे जरूर ते परिशिष्ट ४ दृष्टांत तथा प्रसंग सूची (विषयके सामने दर्शाये हुए अंक पृष्ठ संख्या सूचित करते हैं) अदत्ताका फल-लकडहारेकी कथा ३०९ । गणिकाकी कथा-ऐसेको मिला तैसा... ३२५ अभिमन्युकुमार-गोबर-मिट्टीका कोठा । गौतमस्वामी और पंद्रह सौ तापस-आज्ञा-आराधन २३३,४३७, (२२८)| पर दृष्टांत ४२१ अंबालालभाई (खंभात) २७३,३१२ | चक्रवर्ती राजा और कामधेनु गायके दूधकी खीर २७० आचार्यका दृष्टांत-गुप्त दोष प्रकट करने पर ४६८ | चमरेंद्र और शकेंद्रकी कथा आनंदघनजी और अग्रणी सेठ ३१५ | चित्रपट और तत्त्वज्ञान खो जानेके प्रसंग पर आनंदघनजी-पिंजियारेका दृष्टांत ३१५] एक आर्याकी बात २९६ एक गिरगिटका बच्चा कुचला गया २९० | चोर और विचक्षण मंत्री-समभावकी शरण ३७६ एक मत आपडी के ऊभे मार्गे तापडी १७५, ३१० | चूड़ियोंका व्यापारी-माँजी चलो २८६ ऐसेको मिला तैसा...तती बजाई २६६ | छोटालालभाई (फेणाव) २२३,२८०,२८९ कुगुरु कुत्ता और कीड़ोंकी कथा २८७, २९१ | जनकविदेही और शुकदेवजी-स्वच्छ होकर आ २२९ कूवा लाँघनेकी शर्त-हिंमतके बल पर दृष्टांत २०५ | जनकविदेही और संन्यासी-मिथिलामें मेरा कुछ कौडीके लिये रत्न खोया २४ जलता नहीं ४४४ खाजाका चूरा १९० | जिनरक्षित, जिनपालित और रयणादेवी १९५ ३१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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