Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 589
________________ २६३ ४९२ उपदेशामृत टोलस्टोय और लेनिन-बाहरसे चमत्कार किन्तु भरत चक्रवर्तीका जीव सिंह था तब___ज्ञानीकी दृष्टिसे सत्य हो वही सत्य सत्पुरुषके योगबलका माहात्म्य ३२८ उस पर एक त्यागीका दृष्टांत २७८| भरत चेत! २२६,३०४ ढोलकी वाला देव-विषयासक्त सोनीकी कथा ४३१ | भाव जैसा फल-दो भाइओंकी सामायिक ३५३ तीन पूतलियाँ-बोध मनमें धारण करनेपर ४०९ | भावनगरके दानवीर राजाकी बात ३०३ दंतालीवाले त्रिकमभाई १०३ भैंसके सींग २१० देवकीर्णजी मुनि ४-५,१७२,२०४,२१२,४४७ मघाका पानी-टंके भर लेने चाहिये १७८,३३४ दो बोकडे बचानेका प्रसंग २५९ मरीचिके भवकी बात २५९ दो भाइओंकी स्त्रियोंका दृष्टांत-योग्यतानुसार लाभ ४१२ | महावीर स्वामीको सिंहके भवमें सम्यक्त्व ३२८ धनाभद्र-पूर्वभवकी कथा ३१८,३६३ | माणेक माँजी ३१८ धर्मराजा और अन्य पांडव हिमालय गये २६० | माणेकजी सेठ ३०३ धारशीभाई ३१२ | माधवजी सेठ ३२६ नथु बावा और नथु दरजी २७३ | मुनि मोहनलालजी-कृपालुदेव पर श्रद्धा नारणजीभाई (पूना) ३०३ कैसे हुई? परिग्रह पर सोनामोहरवाले महाराजकी कथा २५७ | रणछोडभाई २६८ पंथकजी विनीत-विनय न छोड़ने पर ५६ | रयणादेवी १९५ पन्ना फिरे और सोना झरे २२४ | रंकके हाथमें रत्न १५४ पूरबियोंकी बात-मैं मेरी फोड़ता हूँ ३६२ वणागनटवर राजाके दासकी कथा पूनाका प्रसंग-संतके कहनेसे कृपालुदेवकी | विद्याधरकी कथा-मरते समय किसमें __ आज्ञा मान्य है २६५ | उपयोग जोडे? ३२८ पेथापुरका कारभारी ३०४ | विनय पर गुरु-शिष्यका दृष्टांत २९९ 'प्रभु प्रभु' बोलनेकी टेव २८६ | व्यासजी और शुकदेवजी प्रसन्नचंद्र राजर्षि १४७,३२९,४६३ | शकेंद्र और महावीर स्वामी ३९४ बाटीके लिये खेत खोया शीतलदास बावाजी २७८ बाहुबलजी-वीरा मारा गजथकी ऊतरो २०४ शुक्रका तारा-दो ब्राह्मण भाइयोंकी कथा ३०५ बालकृष्ण नामक जैनमुनि २५९ | श्रीकृष्ण और दुर्गधित कुत्ता २५४ बिल्लीके बच्चे घानीमें पिल गये ३४३ | | श्रीकृष्ण और जराकुमार ३२९ ब्रह्मचारीजी-बीस दोहें, क्षमापनाका पाठ, श्रीरामका वैराग्य ३३६,३४० __ आठ त्रोटक छंद, स्मरणकी आज्ञा ३९४ | श्रेणिक राजा ३३३,४२०,४४४ ब्राह्मण और बाघ-वचनका घाव २८३ | सत्संगका माहात्म्य-नारदजी और ब्राह्मणका बेटा कोरीके यहाँ बडा हुआ ४०२/ गिरगिटकी कथा ४१७ भगतको आया प्रेम तो मेरे क्या नेम? २०५ | सिर काटे उसे माल मिले १५४ भगत चक्रवर्तीकी अन्यत्व भावना ३०४ | समकितीकी पुण्यक्रिया पर राजाके दंडका दृष्टांत ३२९ भरत चक्रवर्ती-संग्राममें कैसे भाव? ३१६ | साधुको बेरमें इल्ली होना पडा ४०१ ४७० ४३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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