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उपदेशसंग्रह-४
४०१ मुक्ति पाना हो तो ऐसी बुद्धि रखें कि यह पर है। सद्गुरुकी आज्ञाका विचारकर आत्मसाधनका पुरुषार्थ करें।
समकिती समझ सकता है कि आत्माका सुख क्या है? मिथ्यात्वीको उसका लक्ष्य नहीं है। इससे वह समझता है कि साधु-मुनिके पास धन, स्त्री आदि कुछ भी नहीं, फिर उसे क्या सुख है? पर क्या साधु-मुनिको उसकी वासना होती है? उनकी तो उस ओर दृष्टि भी नहीं जाती, वे तो उसे विष्टाके समान त्याज्य समझते हैं। तब उनके पास क्या है? कुछ तो अवश्य होगा ही न? वह है उनमें रही हुई शक्ति-आत्मसुख। जिसने इसका अनुभव किया है वही इसे समझता है और समझकर फिर उसीकी इच्छा करता है। मिथ्यादृष्टि उसे कैसे जान सकता है? वह तो जरा मरण आदि सहित इस संसारके सुखमें लिपटा है। वह सुख तो क्षणिक है, महाबंधनमें और चौरासीके फेरेमें ले जानेवाला है। बड़े बड़े सेठ साहूकार और युरोपके लोग जिस सुखको भोगते हैं, वह पूर्वोपार्जित है। पर उनका मिथ्यात्व गया नहीं है, जिससे वे उस सुखमें मग्न रहकर अनंत भव बढ़ाते हैं। उस सुखसे भिन्न सच्चा आत्मसुख जिसे थोड़ा भी प्राप्त हुआ है वह तो उपरोक्त सुखकी इच्छा ही नहीं करेगा। _चाहे जैसा ज्ञानी हो और वृत्तिका संयम न हो तो वृत्ति बदलते देर नहीं लगती और बात करते निदान हो जाता है। एक *साधुको इल्ली होना पड़ा था। अतः वृत्ति पर लक्ष्य रखकर निदान तो करना ही नहीं चाहिये । संसारमें चाहे जैसा सुख हो पर वह आत्मिक सुख नहीं है, इसलिये वह सच्चा नहीं है और उसे छोड़नेसे ही छुटकारा है।
ता. २९-१०-३२ आत्मा अपनेको भूल गया है। सगे-संबंधी, माता-पिता उसे अच्छा अच्छा कहकर सराहना करते हैं । स्वयं शरीरको और अपनेको एक समझता है। इस संसारमें जैसे केले, आम, द्राक्ष आदि फल हैं, वैसे ही माता, पिता, स्त्री, पुत्र आदि संयोग भी फल हैं। वे संयोग अमुक समयके लिये होते हैं । ये तेरे नहीं है ऐसा कोई कहे तो भी मान्य नहीं होता। परंतु सत्पुरुष मिलें और समझायें कि तू यह नहीं, तू स्त्री नहीं, पुरुष नहीं, वृद्ध नहीं, युवक नहीं, बनिया ब्राह्मण नहीं; तू तो सिद्धस्वरूप
* एक साधु बहुत पवित्र जीवन बीता रहे थे। उन्हें वचनलब्धि प्राप्त हुई थी जिससे वे जो बोलते वही होता। अंत समयमें उन्होंने अपने शिष्योंसे कहा कि मेरी मृत्यु होगी तब बाजे बजेंगे और मेरी सद्गति होगी।
मृत्युशैयाके सामने एक बेरी थी जिस पर लगे पके हुए मीठे बेर पर उनकी दृष्टि पड़ी, यह बेर बहुत सुंदर है इस विचारमें ही थे कि आयुष्य पूर्ण हुआ, जिससे उस बेरमें इल्ली बनना पड़ा। मृत्यु हो गयी पर बाजे न बजे तब शिष्योंको शंका हुई कि गरुकी क्या गति हई होगी? ___ उस समय कोई ज्ञानी पुरुष वहाँ आ गये। शिष्योंने अपने गुरुकी प्रशंसा कर उन महात्मासे कहा कि हमारे गुरुके सब वचन सत्य होते थे पर अंतिम बात सत्य नहीं हुई। __ महात्माने पूछा कि उन्हें अंत समयमें कहाँ सुलाया था?
शिष्योंने वह स्थान बताया। महात्मा वहाँ सो गये। बेरीकी ओर उनकी दृष्टि जाते ही उन्हें वह पका बेर दिखायी दिया। उस बेरको नीचे गिराया और उसे तोड़ा तो उसमेंसे मोटी इल्ली (लट) नीकली। वह तड़फकर मर गयी तब बाजे बजे और उनकी सद्गति हुई।
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