Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 575
________________ ४७८ उपदेशामृत "कथा सुणी सुणी फूट्या कान, तो य न आव्युं ब्रह्मज्ञान ।" "तिलक करतां त्रेपन वह्यां, जपमाळानां नाकां गया." यों इस जीवने कुछ भी लक्ष्यमें नहीं लिया है। जिसका अध्ययन करना है उसे तो छोड़ दिया है। 'पढ़ा पर गुना नहीं।' समभाव क्या वस्तु है? वह कहाँ रहती है? थोड़ा विचार तो करें । तूंबीमें कंकर भरे हैं। यह सर्वनाश कर दिया। बातें करते हैं कि "समता रसना प्याला रे. पीवे सो जाणे: छाक चढ़ी कबहु न उतरे, तीन भुवन सुख माणे." पीये सो जाने । तूंबीमें कंकर भरे हैं। बातें करें, बातोंसे काम होता है? कुछ कहा नहीं जा सकता। अजब है! चमत्कार है! इस मनुष्यभवमें हजारों भव काटे जा सकते हैं। कोई साथ नहीं आयेगा। अकेला आया है, अकेला जायेगा। साढ़े तीन हाथकी भूमिमें जलाकर राख कर देंगे। समता, क्षमा क्या है? बोलना आया है, पर इसका भान नहीं है। यह बनिया, ब्राह्मण, पटेल, छोटा, बड़ा, युवान, वृद्ध-सब है, पर आत्मा है या नहीं? आत्माको देखा नहीं है, उसका पता नहीं है। कैसा मार्ग है ? गुरुगमका ज्ञान नहीं है। ज्ञानीका बोलना-चलना, खाना-पीना सब सुलटा है, जबकि अज्ञानी जो कुछ करता है वह सब बंधनरूप है, विषरूप है। यह क्या है? कुछ कहो तो सही। इस जीवको मनुष्यभव प्राप्त है इसलिये सुन रहा है, कौवे कुत्ते कुछ सुनेंगे? सत्संग नहीं किया है, बोध नहीं सुना है। इसीकी कमी है। इस जीवने जो करना चाहिये वह नहीं किया है। क्या करना है? आत्माको पहचानना है। उसे नहीं जाना है। हम बहुत बार कहते हैं। इस स्थान पर बैठे हैं तो इतना देखते हैं। यहाँसे सातवें खंड पर हो उसे देख सकते हैं क्या? दशामें वृद्धि हो तो विशेष दिखायी देता है। एक ही करना है, समता और क्षमा । मुँहमें शक्कर डाली हो तो मुँह मीठा होता है, पर विष डाला हो तो? कितनी देर है? तेरी देरमें देर है। तैयार हो जा। अंतर्मुहूर्तमें समकित, अंतर्मुहूर्तमें केवलज्ञान होता है या नहीं? पहचान नहीं है। 'भान नहीं निजरूपर्नु ते निश्चय नहि सार ।' *'ज्ञानीके सभी पासे सीधे पड़ते हैं' यों डाले या त्यों-ज्ञानीका सब सीधा है क्योंकि दृष्टि बदल गयी है। यह कैसी खूबी है! कुछ अंतर तो है न? इन चक्षुओंसे देखनेमें और अंतर्चक्षुसे देखनेमें अंतर तो है न? अवश्य है। हो जाओ तैयार, सावधान! जाग्रत हो जाओ। जो खाया वह अपना । बातोंसे काम नहीं होगा, करना पड़ेगा। ये सब बातें ऊपर ऊपरसे कही। इनमें कुछ सार है या नहीं? इन सब जीवोंका कल्याण होगा, लाभ उठाना आना चाहिये। जिसको श्रद्धा होगी उसका काम बनेगा। बड़ीसे बड़ी बात है-एक श्रद्धा। इतना निश्चय कर लेना है। यह नहीं किया है। एक ही वचन है-श्रद्धा । वह जप, तप, सब है। इस भवमें अब अवसर आया है, इसे भूले नहीं। श्रद्धा अवश्य कर लेनी चाहिये। सत्संग और सत्पुरुषार्थ करें। + कथा (उपदेश) सुन सुनकर कान फूट गये तो भी ब्रह्म(आत्म)ज्ञान नहीं हुआ। (कारण, परिणमन नहीं हुआ) तिलक करते करते तिरेपन (५३) वर्ष चले गये अर्थात् बूढ़े हो गये और माला गिनते गिनते मालाके मनके घिस गये, तो भी अंतर्भेद हुए बिना कोई लाभ नहीं हुआ। * ज्ञानीकी सभी प्रवृत्ति सम्यक् होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594