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“जड़ ने चैतन्य बने
फटका
उपदेशसंग्रह-५
४४७ ही पड़ेंगे। इसकी याद दिलानेके लिये नियुक्त व्यक्ति रोज सबेरे भरत चक्रवर्तीसे कहता, "भरत चेत! काल झपाटा देत!" इसका क्या मतलब? सब सामग्री संयोग मात्र है । रानियाँ, वैभव सब पर है, इसकी याद दिलाता था वह व्यक्ति! नाटकमें पुरुष स्त्रीका वेष धारण कर आता है, पर दर्शक जानता है कि वह स्त्री नहीं है। इसी प्रकार यह सब वेष है। आत्मा तद्रूप नहीं होता। आत्मा रोगी, वृद्ध, पुरुष नहीं होता। यह मनुष्यभव है। चेत जायें । पशु भी आत्मा है, पर उसके पास सामग्री नहीं है। मनुष्यभवमें समझ हो सकती है। समझ कर लेनी चाहिये । समझा कि काम बना।
तन्य बन्ने द्रव्यनो स्वभाव भिन्न:
सुप्रतीतपणे बन्ने जेने समजाय छे." विश्वास करें। बोध सुननेसे चाबी घूमती है। मान हो तो छूट जाता है। उलटेको सुलटा करना है। ज्ञानी यही करते हैं। ज्ञानी खाते हुए भी नहीं खाते, सोते हुए भी नहीं सोते ।
आपको जो कहा जा रहा है, वह एक प्रकारकी मार है। भैंसा बैठा हो उसे उठानेके लिये सोटीसे मारा जाय तो नहीं उठता, ऐसा हो रहा है। डंडा मारा हो तो तुरत उठ जाय। बालकको
वह रोने लगेगा, किन्तु उसे कहा जाय कि यह तुझे नहीं किसी अन्यको कहा गया है तो वह हँस पड़ेगा। यह सब तो आपको कहा जा रहा है। भरत चेत गया उससे आपको क्या लाभ? आपको चेतानेके लिये यह बात है। कोई कहते हैं, 'आप कहें वैसा करेंगे।' देवकरणजी महाराज भी यही कहते थे कि “मर्ममें क्यों कहते होंगे? स्पष्ट कह दें तो कैसा!" ज्ञानी तो सागर समान गंभीर होते हैं। योग्यता आने पर कहते हैं। उनको भी यह बात बहुत वर्षों बाद समझमें आयी। नदीमें बाढ़ आती है, समुद्रमें हाथीके समान ऊँची लहरें उठती हैं, किन्तु यह सब वेग है। इसी प्रकार कर्म हैं वे आत्मा नहीं है, पर वेग है। वह तो न्यूनाधिक होता ही है। पर आत्माको देखें । 'जो जानता हूँ उसे नहीं जानें, जिसे नहीं जाना है उसे जानूं।' ऐसा मान लेना चाहिये।
किसीके बाप बनकर उसका धन नहीं लिया जा सकता। बेटा बने तो धन मिलता है। ज्ञान माँगनेकी भी रीत है। 'बापकी बहू, पानी दे' यों कोई लडका कहे तो पानी नहीं मिलेगा। 'माताजी, पानी दीजिये' यों कहे तो पानी मिलेगा। यही करना चाहिये । मान बड़ा शत्रु है। “मान न होता तो यहीं मोक्ष होता।" इसका प्रतिपक्षी लघुता-विनय है।
किसीको रत्नकी परीक्षा न हो तो मार्गमें पड़ा हुआ रत्न भी उसके लिये बेकार है। बालक उठा ले तो उससे खेलने लग जाय, फिर दूसरा कंकर मिल जाय और उसे अच्छा लगे तो रत्नको छोड़कर उस कंकरको उठा ले। अंधा हो तो उसे रत्न दीखे ही नहीं। रत्न क्या है? आत्मा। उसकी प्राप्ति मनुष्यभवमें हो सकती है। विषय-कषाय कंकर है। पहचानें। खिचड़ी बनी हो तो उसमें रंग हल्दीका है, खारापन नमकका है। यह दाल है, यह चावल है, यों पहचान हो तो भिन्नता समझमें आती है। चखने पर नमकके स्वादका पता लगता है। इसी प्रकार पहचान तो करनी पड़ेगी। किसी दूसरेकी वस्तु हो और यह ज्ञात हो जाय कि यह मेरी वस्तु नहीं है, तो तुरत उसे छोड़ देंगे। इसी प्रकार पहचान हो जाने पर जो आपका नहीं है उसे आप तुरत छोड़ देंगे। ___ जीवके पास क्या है? भाव, परिणाम । जैसे भाव करता है वैसा ही परिणमन होता है। भाव सबके पास हैं। बच्चेके पास लकड़ी हो और वह उसे पसंद हो, तब उसे रत्न देने पर भी नहीं
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