Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 567
________________ ४७० उपदेशामृत श्री महावीरस्वामीने गौतमस्वामीको आज्ञा दी थी कि जाओ, अमुक व्यक्तिको यह संदेश दे दो। परमकृपालुदेवने सौभाग्यभाईको कहकर भेजा कि तुम मुनिको इस प्रकार कहना। पर परमकृपालुदेवने यों हमसे नहीं कहा कि तुम इस प्रकार कहना । (यह व्यक्तिगत बात है। कृपालुश्रीने पत्रोंमें तो सामान्यतः 'आत्मार्थीको ऐसा कहें, इस प्रकार उपदेश दें' आदि बताया है जो 'श्रीमद् राजचंद्र' ग्रंथ देखनेसे समझमें आयेगा।) परंतु आज्ञा किसी जीवात्माको प्रत्यक्ष पुरुषके स्वमुखसे प्राप्त हुई होती है, किसीको प्रत्यक्ष पुरुषके कहनेसे कोई अन्य जीवात्मा आज्ञा देता है और कोई जीव प्रत्यक्ष पुरुषसे प्राप्त आज्ञाका आराधन करते जीवात्माको देखकर 'यह आराधक सच्चे पुरुषकी आज्ञाका सच्चे प्रकारसे पालन कर रहा है' ऐसे विश्वाससे उस प्रकारसे उस प्रत्यक्ष पुरुषकी आज्ञा-आराधकको प्राप्त आज्ञाको आत्महितकारी जानते हुए उस आराधकसे जानकर, समझकर उपासना करता है, जैसे कि वणागनटवरको प्रत्यक्ष पुरुषसे आज्ञा प्राप्त हुई और उसकी उपासनाको देखकर, वणागनटवर सच्चे पुरुषकी आज्ञा सत्य प्रकारसे पालन कर रहा है ऐसी श्रद्धासे, उसका दास 'यह वणागनटवर जो और जिस प्रकारसे उपासना कर रहा है, वही मुझे भी हो! मैं कुछ समझता नहीं' ऐसा विचार करते हए आज्ञा-आराधक बनकर कल्याणको प्राप्त हआ। इसी प्रकार हमें परमकृपालुदेवने जो आज्ञा दी है, जिसकी आराधना हम कर रहे हैं, जिस पर हमें दृढ़ श्रद्धा है वह हम आज आपको स्पष्ट अंतःकरणसे खुले शब्दोंमें कहते हैं, क्योंकि हमारे वचन पर आपको विश्वास है, श्रद्धा है कि ये जो स्वयं आराधन करते हैं वही कहते हैं। परमकृपालुदेवकी आज्ञाकी परिणामपूर्वक दृढ़ श्रद्धासे उपासना करेंगे तो कल्याण ही है। वह आज्ञा ‘सहजात्मस्वरूप' ही है, और यही आत्मा है, ऐसी दृढ़ श्रद्धा रखें। यह तो सुना हुआ है, इसमें अन्य नया क्या है? इस प्रकारके विकल्पसे सामान्य रूपमें न निकाल दें। इसमें कुछ अलौकिकता समायी हुई है, ऐसा मानकर दृढ़ श्रद्धासे आराधन करें। मरण तो सबको है ही; शरीर धारण किया तभीसे मरण है और मरणसमयकी वेदना भी असह्य होती है। अच्छे-अच्छे लोग भान भूल जाते हैं। उस समय कुछ भी याद नहीं आ सकता। अतः अभीसे उसकी तैयारी कर रखनी चाहिये जिससे कि समाधिमरण हो सके। 'मृत्युके समय मुझे अन्य कुछ न हो, यही आज्ञा मान्य हो! मैं कुछ भी नहीं जानता, परंतु ये जो कहते हैं वही सत्य है और वही आज्ञा मान्य हो!' यों तैयारी करके रखें । जीव प्रतिसमय मर रहा है। अतः समयमात्रका भी प्रमाद नहीं करना चाहिये । 'समयं गोयम मा पमायए' इस वाक्यको याद करके समय-समय आज्ञामें परिणाम रखना चाहिये । मेरा तो इन पुराणपुरुष परमकृपालुदेवने जो कहा है वह एकमात्र 'सहजात्मस्वरूप' ही है। अन्य कुछ मेरा नहीं। अंतरात्मासे परमात्माको भजना है। अतः अंतरंगसे (अंतरात्मा होकर परमात्मामें जिसे दृढ़, सत्य श्रद्धा है वह अंतरात्मा है) दृढ़ श्रद्धा रखकर आज्ञाकी उपासना करनी चाहिये। ये संयोग-संबंध-स्त्री, पुत्र, माता, पिता, भाई आदि सब पर्याय हैं (कर्मजन्य पौद्गलिक और वैभाविक पर्याय हैं) और नाशवान हैं। अतः वे कोई भी मेरे नहीं हैं। मेरे तो एक सत्स्वरूपी परमकृपालुदेव हैं और उन्होंने जो आज्ञा दी है और कहा है वैसा सहजात्मस्वरूपी एक आत्मा ही है। वह सहजात्मस्वरूप-आत्मा है, नित्य है आदि छह पद जो परमकृपालुदेवने कहे हैं, उस स्वरूपवाला है। वही मेरा है ऐसा माने। अभीसे तैयारी करके रखें कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594