Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 561
________________ ४६४ उपदेशामृत उद्धार होगा । वह क्या है? आत्माको जानना है । अनंत लोग मोक्ष गये वे प्रथम समकित के बिना नहीं गये । समकित जैसी कोई वस्तु नहीं है । समकितके पाँच लक्षणोंमें 'शम' कहा है, इसमें कैसा सुख होगा ? भगवान भी वाणीमें कह नहीं सके ऐसा सुख है । 'शम' आते ही समकित । ज्ञान-दर्शन कल्याणरूप है । ज्ञानीने जैसा देखा वैसा आत्मा है । चेत जायें । एक आत्माको पहचानें । काम बन जायेगा । I ✰✰ संकल्प-विकल्प, कल्पनासे परे अबाध्य अनुभव है । "जो जो पुद्गल-फरसना, निश्चे फरसे सोय; ममता-समता भावसे, कर्म बंध-क्षय होय. " "जब जाकौ जैसौ उदै, तब सोहे तिहि थान; शक्ति मरोरैं जीवकी, उदै महा बलवान. ' "" यह स्त्री है, यह पुरुष है, अच्छा है, बुरा है, यह सब संबंध देखा वैसा है। पुद्गलका नाश है । आत्माका नाश नहीं है । नासिक, ता. २९-३-३६ ऐसा समझ लो कि बीस दोहे महामंत्र है, चमत्कार है! ये सब पुद्गल नाशवान हैं, उसमें मोह है । परंतु एक मात्र मोक्षकी इच्छा रखनी चाहिये । शरीर मेरा नहीं है । 'आत्मसिद्धि' और 'छह पद' के पत्रका मनन करते रहो । खूब विचारपूर्वक उसीका ध्यान रखो । सद्गुरुके कहने से बस इतना ही करोगे और यही मान्यता रहेगी तो सब मिलेगा । एक मात्र वीतरागका मार्ग ग्रहण करो, अन्य नहीं । जो जो मैंने किया है उसके लिये क्षमायाचना करता हूँ, परंतु छूटनेके लिये और परमार्थके लिये । I Jain Education International ( समयसार नाटक : बंधद्वार, ७) है । आत्मा तो है वैसा है-ज्ञानीने करने की बात एक ही है, धर्म । गुरुगम है, चाबी हाथमें है, पर उनकी कृपा होनी चाहिये । कृपा हुई तो वही होगा, इनकी कृपा हो जाय तो बस फिर कुछ नहीं चाहिये । कृपालुकी कृपा है, उसके लिये तैयार हुए बिना छुटकारा कहाँ है ? तैयार न होना है तो जायें । यदि तैयार हो गये तो I काम बन गया । यह जीवनडोर है । इस कलियुगमें विश्वास और प्रतीति रखें। पता नहीं है । चमत्कार है ! ज्ञानीने कहा सो आत्मा मुझे मान्य है । यह बात मिथ्या नहीं है । मात्र एक स्वामी, एक गुरुको सिर पर रखें, फिर कौन कहनेवाला या भुलानेवाला है? बस इतनेमें समझ जाये तो बहुत हुआ । मेरा तो वही गुरु है । अन्य सब तो व्यर्थ है । एक आत्मा ही मेरा है। एक आत्माका निश्चय कराना है। मान्यताकी बात है । न मानें तो कुछ नहीं । समय प्रमादमें बीत रहा है । यह बात चमत्कार है! हमने तो पकड़ कर ली है - अन्य स्वामी नहीं, गुरु नहीं । स्वामी तो वह एक ही है । गुरु बतायी वह एक पकड़ रखनी चाहिये। जो पकड़ेगा उसका काम बनेगा। पकड़ा कि काम हुआ । वज्रलेप है । जिसने पकड़ी उसके बापकी - लाखों-करोडों रुपयोंकी बात है । ऐसी-वैसी नहीं । प्रमादमें न बीतने दें । सतत स्मरण रखें । I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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