Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 562
________________ । ४६५ उपदेशसंग्रह-५ एक आत्मा सत् है। चिंतामणि समान मनुष्यभव प्राप्त किया है। हड्डी-चमड़ी आत्मा नहीं है। ज्ञानीने आत्मा देखा है। अन्य सब चला जायेगा। अभी कोई उपाय नहीं है। एक भाव है । पुत्र, माता, पिता, स्त्री, पैसा आदि सब मिट्टीके ढेले और राखकी पुड़िया हैं। कोई साथ ले गया है? मात्र आत्मा ही है। वह न तो स्त्री है और न ही पुरुष है। इन सबको दियासलाई दिखा दे । एक आत्मा जो ज्ञानीने देखा है वह मुझे मान्य है । 'सद्धा परम दुल्लहा' । एक ही वचन मानना है, लक्ष्यमें लेना है। तूने जो मान रखा है उसे अमान्य करना है। मेरा तो एक आत्मा ही है ऐसा मानना है। पर बोध नहीं है, गुरुगमकी चाबी नहीं है। किसको पूछे ? ताऊको? प्रतीति नहीं, विश्वास नहीं, पकड़ नहीं है। मात्र एक काम करने योग्य है वह यह कि "दूसरा कुछ मत खोज । मात्र एक सत्पुरुषको खोजकर उनके चरणकमलमें सर्वभाव अर्पण करके प्रवृत्ति किये जा। फिर यदि मोक्ष न मिले तो मुझसे लेना।" ये चर्मचक्षु हैं। भवोभव बीत गये पर इन चक्षुओंने सत्यानाश ही किया है। __ "सेवे सद्गुरु चरणने, त्यागी दई निजपक्ष; पामे ते परमार्थने, निजपदनो ले लक्ष." यह पढ़कर कहेगा, "मुझे आता है।" आत्माका भाव करना है। पहचान करनी है, इसका पता नहीं है । भाव तो आत्माका । मुख्य बात आत्माकी। भाव तो कहाँ नहीं है? 'छह पद'का पत्र चिंतामणि है। साथमें आये ऐसा है, बहुत उत्तम है। देह है वह कुछ आत्मा है? देह तो निश्चय ही नाशवान है, संबंध है। शरीरको टिकाये रखनेके लिये आवश्यक हो उतना करना चाहिये। देहमें जो वेदना है वह तो कर्म है । गुरुके प्रतापसे आत्माको जाना, अतः हमें तो कुछ लगता नहीं। आत्माके साथ देह या वेदनाका कुछ लेना-देना नहीं है। वह तो जानेके लिये है। शरीर तो सबका जायेगा ही। किसीका रहेगा? कितनी ही बार शरीर धारण किये और कितनी ही बार छोड़े। सुख दुःख सब कल्पना है। जन्म, जरा, मरण चलते आ रहे हैं। हड्डी, चमड़ी, मांस, लहू, पीपके बने इस शरीरमें 'यह मेरा हाथ, यह मेरा पाँव, यह मेरा मुँह' यों 'मेरा मेरा' कर बैठा है और मोहनिद्रामें पड़ा है। मुमुक्षु-'छह पद के पत्रमें मोक्षका उपाय 'समाधि' बताया गया है, वह कैसे प्राप्त होगी? प्रभुश्री-सद्गुरुका लक्ष्य रखें और उनका जो लक्ष्य है उस पर लक्ष्य रखें। 'आतमभावना भावतां जीव लहे केवलज्ञान रे।' यह भावना रखनेसे समाधि होगी। एक मुल्ला एक व्यक्तिको नित्य कुरान सुनाने जाता था । पर उसको समय न होनेसे वह नित्य उसे वापस लौटा देता था। फिर वह व्यक्ति मर गया तब कब्रमें दफनाते समय मुल्ला कुरान सुनाने लगा। सब लोग पूछने लगे, “ऐसा क्यों कर रहे हैं?" उत्तरमें मुल्ला बोला-"आज तक इसको समय नहीं था इसलिये अब सुनाता हूँ।" सब बोले “अब तो वह मर गया है।" मुल्लाने कहा, “वह तो मर गया है, पर आप तो सुन रहे हैं न?" प्रभुश्री-(सबसे) मृत्यु आये तब क्या करना चाहिये? Jain Education Intern al For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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