Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 556
________________ उपदेशसंग्रह-५ ४५९ सर्वत्र है। जैसा देखना हो वैसा दिखायी देता है। हाथी देखना होगा तो हाथी दिखायी देगा, आत्मा देखेंगे तो आत्मा दिखायी देगा और बनिया, पटेल देखेंगे तो वैसा दिखायी देगा। जीवकी गिननेमें भूल हो रही है। आत्माकी गिनती नहीं की, और शरीरकी गिनती करता है। आत्माकी गिनती करे नहीं और रोगकी गिनती करे तो रोग है। इस भटकते जीवको परमकृपालुदेवने बुला कर लिख दिया : “आतमभावना भावतां जीव लहे केवलज्ञान रे।" मुमुक्षु-यह तो बहुत सुगम मार्ग है। प्रभुश्री-बात सत्य है, पर उस भावमें रहा नहीं जाता। भटकना है तो जा, चक्कर लगाकर आ-भटककर आ। सब हाथमें है। ज्ञानीके एक वचनमें अनंत आगम हैं। क्या करना है? निश्चय करना है। कहा तो सब है, पर बात तो यही है। सबके पास भाव है या नहीं? किसीके पास नहीं है क्या? अब क्या करें? यह ऐसी वैसी बात नहीं है, चमत्कार है! एक वचनमें मोक्ष है! कहते सभी हैं, पर कोई करता है और कोई नहीं करता; जैसा करेंगे वैसा होगा। भावने बुरा किया है, जन्म, जरा, मरण और भव खड़े कर दिये हैं। शुद्धभाव हो तो भटकना नहीं पड़ता। "भावे जिनवर पूजिये, भावे दीजे दान; भावे भावना भाविये, भावे केवलज्ञान." ता.८-२-३६ यह जगत आत्मा नहीं है। आत्माकी पहचान करें। आत्माकी, सत्संगकी भावना रखें। आत्मा हैं उसकी गिनती रखें। वह सुख दुःखको जाननेवाला हैं। सुख जिससे आता है उसका भान नहीं है। जीव मात्रकी इच्छा आरंभ परिग्रहकी है, वह माया है। वह छोड़ने योग्य है। ज्ञानीको आसक्ति नहीं है। ढोर, पशु, पक्षीको कुछ पता लगता है? मनुष्यभव है तो पता लगता है। सब माया है। मेरा भाई, मेरा बाप, यह सब कुछ नहीं है। एक आत्माको जानो। जितनी तृष्णा अधिक उतने जन्म अधिक । बुरेसे बुरी है तृष्णा । तृष्णाने ही बुरा किया है। ___ "क्या इच्छत? खोवत सबै, है इच्छा दुःखमूल; जब इच्छाका नाश तब, मिटे अनादि भूल." इच्छा बुरी है। ऐसा तो भवभवमें किया है। यह सब समझनेसे छुटकारा होगा। समझे तो भव कट जाते हैं और न समझे तो भव खड़े हो जाते हैं। भागदौड़ कर रहा है। जानेवाला है, इसमें शंका नहीं है। ___ अभी तक जीवने चमड़ेका व्यापार किया है, आत्माका नहीं किया। 'मेरा, मेरा' कर रहा है। उसीकी भावना करता है। महापुरुषके वचन हैं, “जहाँ कलपना-जलपना तहाँ मायूँ दुःख छाँई।" जो अपना नहीं है उसे प्राप्त करनेकी भावना करता है। इस संसारमें किसीका इच्छारूपी रोग मिटा है क्या? इच्छा, इच्छा और इच्छा । काम कहाँ होता है? विचार करनेसे इच्छाका नाश होता है। ये सब बैठे हैं पर किसीने आत्मा देखा? चमत्कार है! आत्मा देखो। यह कुँची है। किसीको पता नहीं लगा। किसीने जाना है? किसीने माना है ? किसीने स्वीकार किया है ? किसीको मिला है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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