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विचारणा
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सब पर प्रीति न करें। विभाव परिणामसे थक जायें। सब भ्रम है। जैसे सर्व प्राणियोंको आधारभूत पृथ्वी है, वैसे ही आत्माको कल्याणरूप शांति है। अंतरात्मासे बाह्यात्माका त्याग करता हूँ और परमात्माका स्मरण करता हूँ। ब्रह्मचर्य सर्वोत्कृष्ट साधन है। गहन विचार करें। जीवको घडीभर भी ढ़ीला न छोड़ें, मनकी इच्छानुसार न करें। आत्मा अमूल्य है, इसे निर्मूल्य न करें। सब तुच्छ है, तू अमूल्य है। सब भूल जायें। सदा समीप रहें। सबके शिष्य बनें । क्रोधादि कभी न करूँ। मोहादि, रागादि न करूँ। मुक्ति सिवाय इच्छा न करूँ। हे भगवान् ! सातवीं तमतमप्रभा नरककी वेदना स्वीकार करूँ, किंतु जगतकी मोहिनी नहीं चाहिये। क्षण-क्षण बदलती वृत्ति नहीं चाहिये । जो रूप दृश्य है वह जानता नहीं है, जानता है वह दृश्य नहीं है, तब व्यवहार किसके साथ करूँ ? व्यवहार तो जाननेवालेसे ही हो सकता है। आत्मा अरूपी है, वह इंद्रिय-ग्राह्य नहीं है, अतः मध्यस्थ-उदासीन होता हूँ। जीवको भेदज्ञानकी आवश्यकता है। अत्यंत खेदकी बात है कि विषयोंके आकार द्वारा सर्व ज्ञानरूपी धनका हरण करनेवाले और देहमें रहे हुए इंद्रियोंरूपी चोरोंने लोकका नाश किया है।
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सहजात्मस्वरूप परमगुरु हम जानते हैं हमें पता है। अब क्या है? स्वार्थबुद्धि करते हो? स्व-परहित कर्तव्य है। पुराना छोड़े बिना नहीं चलेगा। छोड़ना पड़ेगा। भूल जाओ। असंग, अप्रतिबंध, शमभाव, समता, क्षमा, धैर्य, सद्विचार, विवेक, समाधिमरण ।
शांतिः शांतिः शांतिः
तत् ॐ सत् आत्मा है-द्रष्टा, साक्षी है। बँधा हुआ छूटता है-समभावपूर्वक देखनेसे। कर समता। संचित, प्रारब्धकर्म, उदयाधीन भोगकर मुक्त होता है। इस पर विचार कर।
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