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उपदेशसंग्रह-३
३७३ भाव तुम्हारे पास हैं। वे जैसे करो वैसे हो सकते हैं। यह मनुष्यभव महादुर्लभ है। लौकिक कार्योंमें, जगतको अच्छा दिखानेके लिये बहुत किया। अब शेष भव अपने आत्माके लिये बिताया जाय, उसकी पहचान करनेके लिये व्यतीत हो तभी मनुष्यभवकी सफलता है। आत्मा पर भाव करने हैं।
'मात्र दृष्टिकी भूल है'-उलटेको सुलटा नहीं किया, आकृतिको सुलटी नहीं की, अन्यथा विषका अमृत हो जाता है। यह स्त्री, यह पुरुष, यह अच्छा, यह बुरा, यह बनिया, यह ब्राह्मण-यों मायाको देखा। बाह्यदृष्टिसे सत्य नहीं दिखायी दिया। गहरे उतरें तो सत्य दिखायी देगा। सत्य देखना चाहिये। वह क्या? आत्मा।
मुमुक्षु-जाने बिना आत्माको कैसे देखें? उसे तो ज्ञानीने जाना है।
प्रभुश्री-भावना तो कर सकते हैं। ऐसा करते-करते योग्यता आने पर ज्ञानी ललाट पर तिलक लगा देंगे।
स्थान-स्थान पर आत्माको देखेंगे तो विषका अमृत हो जायेगा। ज्ञानीके पास दीपक प्रकाशित है। स्थान-स्थान पर एक ही देखें तो निधान है। दृष्टि तो बदलनी ही पड़ेगी। तेरी देरमें देर है। दृष्टि बदले तो अभी, अन्यथा देर है।
जाग्रत हो जाओ, तैयार हो जाओ, मृत्युकी भी चिंता न करो। दृष्टि बदल डालो। नाशवान जगतकी मायासे प्रीति उठाकर एक आत्मा पर भाव, प्रीति, प्रेम करो।
सारा जगत मोहनिद्रामें सो रहा है। उसमेंसे धक्का मारकर भी ज्ञानी आपको जगाना चाहते है, अब आपको सोने नहीं देना है। आप आत्मा हैं। ज्ञानीने जगह जगह आत्मा देखा है वैसा शुद्ध आत्मा ही मेरा है, मैं वही हूँ, उससे भिन्न मैं नहीं हूँ, उससे भिन्न जो है वह मेरा नहीं है। ऐसा विश्वास बना लो। आत्माका माहात्म्य समझमें नहीं आया, इसीलिये आत्माको देखनेकी दृष्टि नहीं बनती। सत्संगमें जैसे-जैसे बोध सुनते रहेंगे वैसे-वैसे समझ आयेगी। समझ आने पर दृष्टि बदलेगी।
सुननेसे पुण्यबंध होता है। करने लग पड़ें तो काम बन जाय । कानमें पड़ते ही ढेर सारे पुण्यकी कमाई होती है। पर उद्यमशील बन जायें तो काम बन जाय।
दृष्टि तो बदलनी ही पड़ेगी। अनंत ज्ञानियोंने ऐसा ही किया है। वैसा करके ही मोक्ष गये हैं। जगह-जगह विषको अमृत किया है। आपकी देरीसे ही देर है। तैयार हो जायें। दृष्टि बदल जाय तो अभी काम बन जाय, अन्यथा अभी देर है।
'मेरा-मेरा' कर रहे हैं वह किसके लिये? एक सुई भी आपके साथ नहीं जायेगी। साढ़े तीन हाथ स्थानमें जलाकर भस्म कर देंगे। आपका तो आत्मा है, उसे पहचाननेका यह अवसर आया है। अतः चेत जायें। उसे सँभाले । उस पर भाव, प्रेम करें। जहाँ भी दृष्टि पड़े, एक मात्र उसे ही प्रथम देखें। यह देखने-जाननेवाला न हो तो सब मुर्दे हैं।
"चित्रकूटके घाट पर, भयी संतनकी भीड़; तुलसीदास चंदन घसे, तिलक करे रघुवीर"
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