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उपदेशसंग्रह-२
२७३ रहा हुआ है। कागज पर 'अग्नि' शब्द लिखकर करोड़ों मनुष्य अपनी पर्चियाँ रूईके गोदाममें डालें तो उससे रूई जलेगी क्या? किन्तु प्रत्यक्ष सच्ची अग्निकी एक छोटीसी चिनगारी भी लाखों मन रूईमें पड़ी हो तो वह जलाकर भस्म कर देती है। अतः शास्त्रका ज्ञान चाहे कितना ही क्यों न हो और कैसा भी क्षयोपशम हो तो भी वह कागज पर लिखी ‘अग्नि के समान है, परंतु आत्माके अनुभवकी एक चिनगारी हो तो भी वह सच्ची अनिके समान कोटि कर्मोंका क्षय कर मोक्ष प्राप्त कराती है। __एक बुढ़िया थी। उसे रूईसे भरी गाड़ी दिखाई दी, उसे देखकर वह पागल हो गयी कि मुझसे तो नित्य पाव भर रूईकी पूनियाँ भी नहीं कतती तब इतनी गाड़ी भर रूई कब कतेगी? फिर एक समझदार व्यक्तिने उस पागल बुढ़ियासे कहा कि माताजी! गाड़ीमें तो अग्निकी जलती हुई चिनगारी गिरी जिससे सब रूई जल गयी।" तब वह 'शांति' कहकर भानमें आई। इसी प्रकार कर्म कितने भी क्यों न हों, उनसे घबराना नहीं चाहिये, धैर्यसे सहन करना चाहिये।
"कोटि वर्षनुं स्वप्न पण, जागृत थतां शमाय;
तेम विभाव अनादिनो, ज्ञान थतां दूर थाय." इसी प्रकार ज्ञान होनेपर उन कर्मोंका बल नहीं है कि ज्ञानकी अग्निके आगे टिक सकें।
समझनेके लिए, अज्ञानका एक मिथ्या दृष्टांत देता हूँ। जहाँ सब कुछ स्वप्न जैसा है, वहाँ सत्य क्या है?
वटामणके पास एक गाँव था, वहाँ एक नथु बाबा रहता था। उसी गाँवमें एक नथु दर्जी भी रहता था। एक दिन उस नथुबाबाने 'तेरे नाम पर थू' कहकर एक बड़े अफसरका अपमान किया। अतः दरबारकी ओरसे आज्ञा दी गई कि नथु बाबाको फाँसी पर चढ़ा दो। वह बाबा तो कहीं दूर चला गया। राज छोड़कर ही चला गया। उसे कौन पकड़े? गाँवके मुखिया पर दरबारकी आज्ञा आयी। उसका उत्तर यों लिखा गया कि नथुबाबा तो भाग गया है। फिर आज्ञा आयी कि चाहे जिस नथुको फाँसी पर चढ़ा दो। अतः 'अंधेर नगरी चौपट राजा के समान बिचारे निर्दोष नथु दर्जीको फाँसी पर चढ़ा दिया गया। यों किसीके बदले कोई मारा जाता है। केलेके साथ उगा एरंडा केलेका पानी पी जाता है ऐसी घटना भी घट जाती है। इन मोहनलालजीकी सेवामें रहा तो कृपालुकी दयासे यहाँ आना संभव हुआ।
ता. २६-१२-२४ किसीका मन दुःखी हो ऐसा न करें। कृपालुदेवका कथन मुझे याद है। इनकी सेवामें खंभातके श्री अंबालालभाई रहते थे। वे अपनी पत्नीके साथ बिलकुल संबंध नहीं रखते थे। यह उनके मातापिताको बुरा लगा और यह बात कृपालुदेवके पास आई। तब कृपालुदेवने उन्हें सेवासे निवृत्त होनेकी आज्ञा दी और कहा कि जाकर उनके मनको संतुष्ट करो। चाहे जैसे सामनेवालेको समझाकर, राजी रखकर, धर्मकी साधना करनी चाहिये, मन दुःखाना नहीं चाहिये।
आश्रममें नहीं जाना ऐसा कुछ प्रतिबंध हमें नहीं है और वह एकांतपूर्ण सुंदर स्थान भी है। परंतु कृपालुदेवकी दृष्टिसे विचरण करना है। अभी तो आश्रमसे मन उठ गया है। वहाँ मोहनलालजी रहेंगे। यहाँ भी कुछ आपत्ति जैसा नहीं है। पर सुबह-शाम मच्छीमार लोग जाल
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