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उपदेशसंग्रह-३
३६९ वृत्ति तो चंचल ही है। अब वृत्तिको स्थिर करनी है। बाह्यवृत्तिमें रहनेसे, बाह्य आत्मामें रहनेसे क्या काम बनेगा? आत्मामें वृत्ति मुड़े, अंतर आत्मामें परिणाम हों और उससे सैंकड़ों भव कट जायें ऐसा करनेकी आवश्यकता है। अतः समागम, सत्संग, बोध-इनको प्राप्त करनेकी इच्छा रखें; इनकी भावना रखें। जीव सर्वत्र समय व्यर्थ खो रहा है। कहीं समय गुमाना नहीं चाहिये। एक आत्माको शान्ति देनी है। 'शांति पमाडे तेने संत कहीए।' ढूँढते ढूँढते मिल जायेगा।
समय बीत रहा है। मनुष्यभव दुर्लभ है। अनमोल क्षण बीत रहा है। आत्माको देखा नहीं है। ज्ञानीकी शरणसे भाव अच्छे होते हैं।
आबू, ता. ९-६-३५ जगतमें मायाका स्वरूप है। उसकी सब बातें कीं पर एक आत्माके विषयमें "मैं कौन हूँ? कहाँसे आया हूँ?" यह बात मिलनी दुर्लभ है। कानमें पड़ते ही पापके दलिक नष्ट होते हैं और पुण्यका बंध होता है।
आत्माकी बात इसमें (आत्मसिद्धिमें) कहते हैं, उसे अब हमें सुननी चाहिये।
इस वर्तमानकालमें मोक्षमार्ग बहुत लोप हो गया है, मोक्षमार्ग बहुत दुर्लभ हो गया है, पर कोई आत्मार्थी, आत्माका इच्छुक हो उसके लिये यहाँ कहते हैं।
जो हम देखते हैं वह सब माया, मोह, कर्म, स्वप्न है। वह आत्मा नहीं है। आत्मा तो अब बताना है। जो विचक्षण होंगे वे ही इसे लक्ष्यमें लेंगे। यहाँ दो घड़ी बैठेंगे उसमें कोटि कर्म क्षय हो जायेंगे। सब छोड़ना है, वह हमारा नहीं है। हमारा तो आत्मा है। आत्माका सुख अनंत है। उसे सद्गुरु बताये तो ज्ञात होता है और जन्ममरणसे मुक्त हुआ जा सकता है। सारा जगत बाह्यमें पड़ा है, आत्मामें कोई नहीं। आत्माकी पहचान करनी है। आत्माके सिवाय पद, अधिकार, मान, बड़ाई कुछ भी अपना नहीं है । यह सब तो छोड़ना पड़ेगा। धोखा है। इस जीवका अनंतकालसे परिभ्रमण हो रहा है। पर ध्यान नहीं दिया। अंतरमें आत्मा है। मनसे विचार करने पर समझमें आयेगा। अंतरमें आत्माका विचार कराना है। नहीं, नहीं, तू यह नहीं है, तू आत्मा है, इन सबसे अलग है। इस पर विचार कर।
कर्म अनंत प्रकारके हैं। उनमें मुख्य आठ हैं और उनमें भी मुख्य मोहनीय है। समस्त विश्वमें उसका राज्य चलता है।
मान-बड़ाई, पूजा-सत्कार यह कुछ भी मेरा नहीं है। मेरा तो एक आत्मा है। जो इच्छुक है वह तो खायेगा भी नहीं, पियेगा भी नहीं। उसका चित्त तो एक मात्र उसमें ही रहेगा। 'प्रीति अनंती पर थकी, जे तोडे ते जोडे अह।' प्रेमको सब ओर बिखेर दिया है। उसे सब जगहसे समेटकर एक आत्मासे करना है। 'मेरा मेरा' कहता है वह भूल है, माया है, मोह है।
अभी प्राप्त हुआ मनुष्यभव महा दुर्लभ है। अतः जिस स्थान पर आत्माकी पहचान होती हो उस स्थान पर जाकर सावधान हो जाना चाहिये।
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