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उपदेशामृत प्रभुश्री-हम कुछ नहीं कह सकते । यह अंगूठी ले लें और आपको रखनी हो तो रख लें और बेचनी हो तो बेच दें, पर पैसे लेकर आयें तब जिस-जिस खातेमें जितना-जितना देना हो, उतना विचार करके दे देना।
यहाँ कई बहन और भाई यों चूड़िया या आभूषण रख देते हैं, उनको हम यही कहते हैं। भावनाकी बात है। जितना लोभ छूटे उतना अच्छा। पर हमें अपने चरणोंकी पूजा नहीं करवानी है। पहले यह होता था, वह सब अब बंद कर दिया है। हमें थप्पड़ें लगी है। बहुतसी बातें हो गई हैं, वे याद हैं। अतः हमें अब ऐसा बंधन नहीं करना है। गुरु जो हैं वे ही हैं। यह उनका अधिकार है। हम तो साधक हैं, मार्ग बता देते हैं। मानना न मानना आपका अधिकार है। किन्तु जिससे हमें बंधन हो वैसा हम नहीं करेंगे।
['गोमट्टसार का वाचन चालू । पुद्गलको रूपी और अरूपी कहा था वह अटपटा लगता था जिससे सब उलझ गये थे, उस प्रसंग पर]
प्रभुश्री-कुछ अटक जाने जैसा नहीं है। कुछ भी खींचतान किये बिना, आत्महितके लिये पुद्गलका वर्णन किया है-परमाणुके रूपमें अरूपी और स्कंधमें रूपी यों मानकर आगे बढ़ें।
मुमुक्षु-मेरा एक बेग गाड़ीमें खो गया जिसमें कृपालुदेव और आपके चित्रपट तथा 'तत्त्वज्ञान भी साथमें खो गये। अतः दूसरा चित्रपट और आपके हस्ताक्षर सहित 'तत्त्वज्ञान' देनेकी कृपा करें।
प्रभुश्री-एक आर्याजीने वडोदरामें चातुर्मास किया। उनको स्लेटकी आवश्यकता होनेसे एक वकीलने अपने पुत्रकी स्लेट उन्हें दे दी, किन्तु स्लेट पर पाँव पड़ जानेसे टूट गई जिससे आर्याजीको बुरा लगनेसे वह रोने लगीं। वकीलको जब यह बात मालूम हुई तब वह दूसरी स्लेट लाकर देने गया, किन्तु देते हुए उसने कहा-'स्लेट जैसी वस्तुका भी उपयोग नहीं रहता तो संयममें उपयोग कैसे रहेगा?' यह सुनकर उसे मुँह नीचा करना पड़ा था।
इस प्रकार उपयोग न रखनेसे वस्तु खो जाती है या बिगड़ती है। चित्रपट आदिका खोना तो असातनाका कारण है। यदि यात्रामें दर्शन करनेके लिये रखनेकी इच्छा हो तो उसे जीवकी भाँति सँभालकर रखना चाहिये।
[सुबहमें रूपी-अरूपी पुद्गलकी चर्चा फिर हुई और कुछ कुछ समझमें आई।] प्रभुश्री-कुछ होशियारी दिखाने जैसा नहीं है। हमने कृपालुदेवसे कहा था कि हमने शास्त्रोंसूत्रों आदिका वाचन किया है। पर उस पुरुषकी कितनी गंभीरता! मात्र थोड़ा-सा सिर हिलाया और फिर कहा-ठीक है, ठीक है, कूएके मेंढकके समान थोड़ा जानकर छलकनेकी जरूरत नहीं है।
सब असातामय ही है। सातावेदनीय भोग रहे हैं, वह भी असाता ही है, पर भान नहीं है। जितना पैसा, परिग्रह है वह सब असातावेदनीय है, छोड़ने योग्य है। शरीर वेदनाकी मूर्ति ही है।
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