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उपदेशामृत 'सवणे नाणे विनाणे' सत्संगमें आत्माकी परोक्ष श्रद्धा होती है। उसमेंसे प्रत्यक्ष होती है। पहले परोक्ष करनेके लिये सत्संग, सद्बोधकी आवश्यकता है।
आबु, ता. ३१-३-३५ 'जो जानता हूँ उसे नहीं जानें, जो नहीं जाना उसे जानें ।'-जानने योग्य एक आत्मा है। अन्य सब छोड़ने योग्य है।
चलते-फिरते, बोलते-चालते, जहाँ दृष्टि पड़े, वहाँ एक आत्मा देखा जाय तो काम बन जाय । परोक्ष भी मान्यता ऐसी रहे कि मैंने नहीं पर मेरे ज्ञानीने तो आत्माको देखा है। बस वैसा ही मुझे मान्य है। आत्माके अतिरिक्त अन्य कुछ भी मेरा नहीं है। यों परोक्ष लक्ष्य रहें तो उसमेंसे प्रत्यक्ष हो जायेगा। __सारा संसार त्रिविध तापसे जल रहा है। उससे बचानेवाला एक मात्र समकित है। उसे प्राप्त करनेके लिये जाग्रत होनेका अवसर आया है। उसकी भावना रखें।
संतसे जो भी समझ प्राप्त हो उसे पकड़कर, तदनुसार प्रवृत्ति करनेका लक्ष्य रखें । बीस दोहे, क्षमापना-इतना भी यदि संतसे मिला हो तो ठेठ क्षायिक समकित प्राप्त करायेगा, क्योंकि आज्ञा है वह ऐसी वैसी नहीं है। जीवको प्रमाद छोड़कर योग्यतानुसार जो जो आज्ञा मिली हो, उसकी आराधनामें लग जाना चाहिये, फिर उसका फल तो मिलेगा ही। __ सत् और शील योग्यता लायेंगे। और अंतमें कह दूं ? ये अंतिम दो अक्षर भवसागरमें डूबतेको तारनेवाले हैं। वह क्या है? भक्ति, भक्ति और भक्ति । स्वरूप-भक्तिमें परायण रहें।
आबू, ता. १-४-३५ जब तक शरीर ठीक है तब तक धर्म कर लें। प्रमाद न करें। मनुष्यभव महा दुर्लभ है। अकेला आया है और अकेला जायेगा। एक धर्म ही साथ चलेगा। अतः चेत जायें । ऐसा योग फिर मिलना दुर्लभ है। यह शरीर अच्छा है तब तक इससे काम करा लें। भक्ति करनेमें इस मनुष्यदेहका उपयोग कर लें। ये हड्डियाँ, चमड़ा, खून क्या ये आत्मा है ? आत्मा अपूर्व वस्तु है। उसका सुख अचिंत्य है। खाते-पीते, चलते-फिरते, एक चाबी जिनको प्राप्त हो गयी है, ऐसे ज्ञानी बँधते नहीं। ____ मोक्षमार्गमें जानेवालेको क्रोध, मान, माया, लोभ छोड़ने पड़ेंगे। लाख वर्षका चारित्र भी क्रोधसे जलकर भस्म हो जाता है और नरकमें ले जाता है, ऐसा महाशत्रु क्रोध है । मान भी बड़ा शत्रु है। विनय धर्मका मूल है। विनय है, लघुता है-छोटे हैं वे बड़े बनेंगे। मायासे मैत्रीका नाश होता है। जो सरल हैं, वे ही धर्मप्राप्तिके उत्तम पात्र हैं। 'लोहो सव्व विणासणो।' लोभसे सब नष्ट होता है। जिसका लोभ छूटा उसे समकित प्राप्तिका हेतु मिल गया। चारों कषायों पर विस्तारसे लिखा जाय तो एक पुस्तक भर जाय । मोक्षमार्गमें आगे बढ़नेवालेको इन सबको छोड़ना है।
हर्ष-शोक नहीं करें। सबको चले जाना है। संयोग है, उसका वियोग तो होगा ही। आत्मा मरता नहीं। पर्यायका नाश होता है। आत्मा अविनाशी है। उसे पहचाननेका यह अवसर आया
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