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उपदेशसंग्रह-२
२९१ सबको यहाँ किसने बुलाया है? सब अपने-अपने संस्कारोंसे आकर मिले हैं। कुछ पूर्वमें किया होगा तब न? हमें किसी पूर्व पुण्यके प्रतापसे भेदी पुरुष मिला और उनके वचनसे हमें जो शांति मिली, उससे मनमें सदैव ऐसा रहता है कि सर्व जीवोंका कल्याण हो! हम तो गुरु बनते नहीं, पर सद्गुरुको बता देते हैं। हमारा कहा मानकर जो उनकी आज्ञाका पालन करेंगे उनका अवश्य मोक्ष होगा। पर यदि वे बिना समझे मार्ग बतानेवालेसे ही चिपक जायेंगे-कहावत है कि 'पूंखनेवालीको ही ब्याह ले' ऐसा करेंगे तो हमारी जिम्मेवारी नहीं है। बतानेवालेको खतरा है। गुरु बनना बहुत जिम्मेवारीका काम है। आपने बात सुनी होगी। अयोध्यामें एक कुत्ता था। उसके सिरमें कीड़े पड़ गये थे। वह कुत्ता पूर्वभवमें कुगुरु था। रामने उन कीड़ोंको गंगामें स्नान कराकर मोक्ष प्राप्त करवाया, पर कुगुरुका उद्धार नहीं हुआ। उलटा मार्ग बताने जैसा बड़ा खतरनाक कोई काम नहीं । श्रद्धा आनी चाहिये । अन्यथा 'ओ...हो' में निकाल दे तो सच्चे मंत्रसे भी सिद्धि नहीं होती। एक बड़े योगीने एक व्यक्तिको 'राम राम' जपनेका मंत्र दिया। वह जपता-जपता जा रहा था। रास्तेमें उसने अहीरोंको बातें करते देखा । वे भी अलग होने पर 'राम राम' बोलते थे। यह देखकर उसका विश्वास उस महात्मा पुरुषके शब्दों परसे उठ गया। वापस जाकर उसने गुरुसे कहा कि 'आपने जो मंत्र बताया था वह तो अहीर भी जानते हैं। ऐसा मंत्र क्या दिया?'
आत्मा आत्मा या धर्म धर्म तो सारा जगत कहता है, पर एक व्यक्ति उसे पहचानकर तद्रूप होकर कहता है, शब्दमें आत्माका आरोपण कर मंत्र देता है और दूसरा व्यक्ति बिना समझे तोतेकी तरह बोलता है उसमें अंतर है या नहीं? यह कोई अपूर्व बात है प्रभु! कल्याण हो सकता है, पर जीव लगा रहे तब, कुछ स्वच्छंद या स्वार्थ न रखे तब।
कल 'तत्त्वज्ञान' लाना। उसमेंसे अवसर आने पर करने योग्य कुछ पाठ बतायेंगे। जैसे नहाकर चंडीपाठ बोलते हैं, वैसे क्षमापनाका पाठ और बीस दोहे बतायेंगे। उनका प्रतिदिन पठन करना और 'सहजात्मस्वरूप परमगुरु'का जाप करना।
['उपमिति भवप्रपंच कथा' में अपुण्यककी कथाके प्रसंग पर] इंद्रियोंके विषयभोग और कषायका कदन्न' खाकर अपुण्यक नामक भिखारीको रोग हुए, फिर भी उन्हें छोड़नेका उसका मन नहीं होता । खा, खा, अभी खाये जा। कितने कालसे खा रहा है फिर भी पेट नहीं भरा। ___ उनकी (सत्पुरुषकी) करुणा तो सारे संसारके उद्धारकी होती है, पर अभागा जीव उसे माने तब न? पाँच इंद्रियोंके विषय और कषाय मनरूपी घरके स्वामी बन गये हैं। इन शत्रुओंको निकाले तभी आत्माका कल्याण करनेवाली सत्दया और सद्बुद्धिरूपी देवियोंका आगमन होगा। इनका निवास हो तभी कल्याण होगा। कुछ पढ़ना आ जाय या अध्ययन किया हो या याद रहता हो तो उसका अभिमान करता है कि मुझमें बुद्धि है न? मुझमें दया है न? पर मिथ्यात्वके कारण भटकता है । मतिश्रुतज्ञानमें और कुमति-कुश्रुतमें भेद है, इसका पता कहाँ है? भीखके ठीकरेमें इस कुबुद्धिको लेकर भटक रहा है, उस पर मोह करता है और उसका गर्व करता है।
१. बिगड़ा हुआ बासी भोजन, खराब अन्न । Jain Education International
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