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विचारणा
१४७ मुमुक्षु-सम्यक्त्व कैसे परिणत होता है? प्रभुश्री-सद्गुरुके बोधसे। मुमुक्षु-वर्षामें मिट्टी भीगती है, वैसे जीव बोध परिणत होनेपर भीगता है? प्रभुश्री-परिणत होनेपर भीगता है। बाह्यकी दौड़ है।
"प्रीति अनंती पर थकी जे तोडे हो ते जोडे एह।" __ प्रमाद क्या? मद, विषयादि प्रमादके भेद हैं। एक ऐसी कुंजी है कि जिससे सब प्रमाद नष्ट होते हैं, वह गुरुगम है जी। 'ऊठी नाठा बोद्धा।'
(४) कार्तिक सुदी १३, सोम, १९८८,
ता. २३-११-३१ प्रभुश्री-उल्लास परिणाम क्या?
मुमुक्षु-कल्याणके अपूर्व कारणरूप रत्नत्रय पर प्रमोद, रुचि वह उल्लास परिणाम है। प्रसन्नचंद्र मुनिके परिणाम बदले, उसका कारण कृपादृष्टि या सन्मुखदृष्टि?
प्रभुश्री-सन्मुखदृष्टि । आत्म-पहचान होने पर सन्मुखदृष्टि कहेंगे या नहीं?
समपरिणाम किससे होते हैं? पहचानसे। जहाँ विषमदृष्टि है, वहाँ समपरिणाम नहीं है, कल्याण भी नहीं है। सहजस्वरूपमें जीवकी स्थिति होना उसे ज्ञानी मोक्ष कहते हैं।
कार्तिक वदी २, शुक्र, सं. १९८८,
ता. २७-११-३१ 'चित्तकी निरंकुशता' क्या है? इस पर विचार कर्तव्य है। इस पर ऊहापोह नहीं होता। कायरताकी बात न करें।
'पूछता नर पंडित।' अकुलाहट, घबराहट, असाता अच्छी नहीं लगती। इसकी औषधि क्या? पुरुषार्थ है।
जिसका समय ढूँढनेमें, पूछनेमें बीतता है, उसका समय यथार्थ बीतता है। गया क्षण वापस नहीं आता। समय समय जीव मर रहा है जी।
यथार्थ बोधमें एक दृष्टि-वृत्ति किस पर करें? सम्यक्भावकी भावना कर सम्यक् स्थिति पर।
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