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उपदेशसंग्रह-२
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सेवा करना और आज्ञाका पालन न करना, यह पाँव दबाना और जीभ पर पैर रखनेके
समान है ।
स्त्रियोंमें सरलता होती है, उनके मनमें ग्रंथि नहीं होती ।
जिस 'पंचाध्यायी' का स्वाध्याय चलता है वह जिसकी समझमें आता हो उसे ध्यान रखना चाहिये। यह दूसरोंको भी हितकारी है ।
मुमुक्षु - ' शुभ शीतलतामय छांय रही' इस पदमें 'नवकार महापदने समरो' के स्थान पर 'सहजात्मस्वरूप सदा समरो' ऐसा क्यों बोला जाता है ?
प्रभुश्री - 'नवकार' और 'सहजात्मस्वरूप' में अंतर नहीं है । और, इसे हटाकर हमें अपना अन्य कुछ करना नहीं है । सर्वत्र भजन आदिमें, इसीके विचारमें समय बिताना है । हमें तो कुछ पता नहीं है, पर कुछ अंशोंमें उस पुरुषकी आज्ञा स्वीकार की है । यदि विराधना करोगे तो मारे जाओगे। 'हे हरि! हे हरि ! शुं कहुं ? दीनानाथ दयाळ !' के स्थान पर 'हे प्रभु! हे प्रभु!' बोलनेकी आज्ञा हुई थी । तब उस प्रकार कहना न मानें तो स्वच्छंद माना जायेगा ।
कृपालुदेवके प्रति प्रेम समर्पित करें। हम सभी साधक हैं । विकथामें नहीं रुकना है । यह काम तो मोहनीय कर्मका उन्माद है ।
'महामोहनीय कर्मथी बूडे भवजळमांहि' - जिन्होंने सिर मुँडाया है उन्हें चेतने जैसा है ।
'मोक्ष कह्यो निजशुद्धता' - कर्म आ-आकर गिरते पर शुद्धता, समताको संभालें । सहजात्मस्वरूप परमगुरुदेवकी जय अथवा त्रिलोकीनाथकी जय बोली जाय तब आनंद आता है, परंतु धूल उड़ती हो तब कोई आँखें फाड़ता है ? घर देख लेने पर घरमें घुस जाता है अथवा आँखों पर कपड़ा ढक लेता है ।
ता. १९-६-२३, सबेरे
जानते हैं यह स्थान कैसा है ? देवस्थानक है ! जिसे यहाँ आना हो वह लौकिकभाव बाहर, द्वारके बाहर छोड़कर आये । यहाँ आत्माका योगबल प्रवर्तमान है, युवानका काम नहीं है । जो इच्छुक होंगे वे रहेंगे। जो उत्कंठित हो उन्हें भक्ति - भजनमें समय बिताना चाहिये | चित्रपट और पवित्र स्थानोंकी अवज्ञा न करें ।
पूना, श्रावण वदी ९, ता. १८-६-२४, शामको
ये भाई चरोतर-गुजरातसे आये हैं। क्या इन्हें यहाँ व्यापार करना है ? इतनी दूर पहाड़ लाँघकर आत्मकल्याणके लिये आये हैं । यहाँसे कुछ लाभ लेकर जायें तो अच्छा । दुषमकालमें सत्संग दुर्लभ है । आत्महित विस्मृत न हो इसके लिये पुरुषार्थ कर्तव्य है ।
ता. २२-६-२४
इसे क्या कहेंगे? क्या स्वामीनारायणके समान 'संसारीको गद्दी पर बैठाकर उसे संन्यासी नमन १. पूनामें प्रभुश्री पूर्वाश्रमके पुत्र मोहनभाईको कुछ मुमुक्षुओंने प्रभुश्रीकी अनुपस्थितिमें रातमें उनकी गद्दी पर बलपूर्वक बिठाकर भक्ति की थी, उस संबंध में ।
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