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उपदेशामृत
ता.१९-१२-२४ 'इष्टोपदेश में से वाचन
__"क्षोभरहित एकान्तमें तत्त्वज्ञान चित्त लाय ।
सावधान हो संयमी निजस्वरूपको भाय ॥३६॥" क्षोभरहित-अटका न रहे। चाहे जैसी बाधा आवे, पर उसे दूर करे। आत्मानुभवकी, गुरुकी सच्ची शरणकी तो खूबी ही कुछ ओर है! गला सँध रहा हो, श्वास छातीमें समाता न हो, चक्कर आते हो, घबराहट होती हो तो भी क्या हुआ? चाहे मृत्यु क्यों न आ जाये, पर सच तो सच ही है। अब तुझे (वेदनाको) नही मानूँगा । अनादिकालसे ऐसी ही भूल हो रही है, पर अब सद्गुरुके वचन हृदयमें लिख रखे हैं। देहका अंत हो जाये तब भी उसे नहीं छोडूंगा। यह पकड़ा हुआ पल्ला नहीं छोड़े तो क्या सामर्थ्य है कि मोहराजा उसके सामने देख सके?
मोहराजा क्रोधसे कहता है, "भाई, तू जा, जा। यह तो कुछ अलग ही सुनने, स्मरण करने बैठा है। फिर हमारा नहीं रहेगा। अतः शीघ्र जा।" परंतु तलवार या कुल्हाडी लेकर खड़े व्यक्तिके पास जानेसे सब डरते हैं। तब क्रोध कहता है, “अभी तो वह जोशमें है, वह मेरे वशमें नहीं आयेगा।" मानभाईको कहता है, “तुम तो बड़े आदमी हो, तुम्हारा प्रभाव पड़ेगा।" पर उसे भी डर लगा कि अभी तो बड़े लोगोंके आश्रयमें है, अतः मेरा बस नहीं चलेगा। मायासे कहा तो वह भी कहने लगी कि उसे तो और ही लगन लगी है, अतः मेरा कुछ नहीं चलेगा। अतः अंतमें लोभभाई चले । जहाँ रिद्धि-सिद्धि दिखाई दे तब लगता है कि अन्यकी अपेक्षा मुझमें कुछ विशेषता है। यों लोभभाईके साथ मानभाई भी आये और माया आदि भी आई। किन्तु पहलेसे ही मान, पूजा, बड़प्पन, लालसा आदिको जिसने जला दिया हो और एक मात्र मोक्षकी अभिलाषा रखी हो तब फिर देख लो उसका बल! प्रभु! कुछ कर लिया हो तो काममें आता है और चलित न हो तो इनका-कृपालुदेवका-ऐसा योगबल है कि चाहे जैसे कर्म हों उन्हें जलाकर भस्म कर डाले । कर्मका क्या बल? पर इनकी शरण ग्रहण करे तब ऐसी गाँठ लगा दे कि वह छूटे ही नहीं। तब तो जो आये उसे फटाफट देने लग जाय, तू भी आ जा। शूरवीरकी भाँति शस्त्र चलाये और कर्मोंको नष्ट करे। चाहे जैसी वेदना हो पर उसका लक्ष्य वही रहे।
चक्रवर्ती राजाके यहाँ कामधेनु गाय होती है। दस हजार गायोंका एक गोकुल माना जाता है, ऐसे अनेक गोकुल चक्रवर्तीके यहाँ होते हैं। मात्र दूसरी गायोंका दूध पीकर रहनेवाली जो गायें होती हैं, उनका दूध पीकर रहनेवाली हजार गायें होती हैं, उनका दूध पीकर रहनेवाली सौ गायें होती हैं, फिर उनका दूध पीकर रहनेवाली दस गायें होती हैं और उनका दूध पीनेवाली एक कामधेनु गाय होती है। उसके दूधकी खीर उसका बछड़ा या चक्रवर्ती ही पी सकता है। चक्रवर्तीकी पट्टरानी भी उसे पचा नहीं सकती। उनकी दासी पकानेके बर्तनमें चिपकी हुई खुर्चन या जला हुआ मावा बर्तन साफ करनेके समय खा लेती है तो उसमें इतना बल आ जाता है कि जो हीरा घनकी चोटसे या खलमें रखकर पीसनेसे भी न टूटे, उसे वह चुटकीमें दबाकर चूरा कर डालती है। तब चक्रवर्तीकी शक्तिका तो कहना ही क्या! किसके लिये यह दृष्टांत दिया वह बात तो भूल ही गये। कुछ बलके विषयमें होगी।
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