________________
उपदेशसंग्रह-२
२६३ किसीको सुखी करनेसे अपने आत्माका ही हित होता है। संक्षेपमें, जिसकी तृष्णा कम होती है, रागद्वेष कम होते हैं, उसे उतने कम जन्म लेने पड़ेंगे और तृष्णाका नाश होने पर मोक्ष होगा।
ता.१५-६-२३ जिसने आत्माको प्राप्त किया है वे सद्गुरु; शुद्धात्मा बने हैं वे सदेव और जिनसे ज्ञान परिणमित होता है वे सब साधन-भक्ति, आज्ञाका आराधन आदि-धर्म हैं।
१. मुमुक्षु-कृपालुदेवका क्या अर्थ है? वे मिले हैं इसका क्या अर्थ? और उन्हें कैसे पहचाना? प्रत्येक व्यक्ति क्या समझकर यहाँ आते हैं या यहाँ चिपक रहे हैं? अनादिकालसे खोटेको चिपकनेसे परिभ्रमण चल रहा है, पर अब जिससे चिपके हैं वे सच्चे हैं यह कैसे जाना?
२. मुमुक्षु-(पूछने पर) मुझे पता नहीं। मुझे सत्पुरुषकी क्या परीक्षा? प्रभुश्री-जो बुद्धिमें आये वह कहना चाहिये।
२. मुमुक्षु-मैं पहले भक्ति करता था, पर चित्त शांत नहीं होता था। इतनेमें श्रीमद् राजचंद्रके संबंधमें सुना और तत्त्वज्ञान पढ़नेका अवसर मिला। उसके बाद सुना कि आपको उनसे समागम है। काविठा और सीमरडामें आपका समागम हुआ। तबसे ऐसा लगा कि ये वचन कुछ अपूर्व हैं।
३. मुमुक्षु-सत्पुरुषकी मुखमुद्रा, नयन और वचनका प्रभाव दर्शन करते ही पड़ता है। ४. मुमुक्षु-सत्पुरुषके वचन आत्मामेंसे निकलते हैं इसलिये असरकारक होते हैं।
__ “निर्दोष नरनुं कथन मानो, तेह जेणे अनुभव्यु." ५. मुमुक्षु-ज्ञानीसे तू ज्ञानकी इच्छा रखता है, पर भक्ति नहीं है तो ज्ञान कैसे परिणत होगा? ऐसा वचनामृतमें लिखा है, अतः ज्ञानकी अपेक्षा भक्तिमें ही रहना चाहिये।
प्रभुश्री-यह सच है, ज्ञानीका विश्वास हो जाने पर भक्ति करनी चाहिये, पर ज्ञानीकी पहचान कैसे हो? यह प्रश्न है। ६. मुमुक्षु-तुलसीदासजीने ज्ञानीके निम्न लक्षण कहे हैं
"तनकर मनकर वचनकर, देत न काहु दुःख;
कर्म रोग पातिक जरे, देखत वाका मुख." फिर ज्ञानी स्व-पर हितके साधक होते हैं और कृपालुदेवने भी 'आत्मज्ञान समदर्शिता' वाली गाथामें सद्गुरुके लक्षण कहे हैं। उनके अनुसार ढूँढनेसे पहचान होती है।
७. मुमुक्षु-लोह-चुंबकके समान आकर्षण होता है, जाना हो संदेशर और पहुँच जाय अगास आश्रम। एक बार बैल खो गया उसे ढूँढते हुए आपके पास नडियाद पहुँच गया। खेतमें जाना होता है और यहाँ चले आते हैं; इस परसे हमें तो लगता है कि यह सत्य है।
८. मुमुक्षु-संसारभाव मंद होनेसे जाना जा सकता है।
मुनि मोहनलालजी-देवकरणजीके उपदेशसे मैं संसार छोड़कर साधु बना। आपके प्रति भी पूज्यभाव तो था ही, परंतु फिर कृपालुदेवके साथ आपका संबंध होने पर आप और आपके शिष्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org