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उपदेशामृत
चेत जाये तो भाग्यशाली है । पूर्वभवकी आराधकता हो और भाग्यशाली हो तो चेत जाता है । स्त्री, पुरुष आदि कुछ न देखें, पर आत्माको देखें - ज्ञानीपुरुषोंने देखा है उसे । मैंने कृपालुदेवसे कहा कि यह सारा जगत 'भ्रम' है, तो कहा कि 'आत्मा' को देखो। फिर आँटी पड़ गयी कि यह क्या कहा ? तब कहा कि विचार करो । आत्माके बिना कोई कर सकेगा? और सुन सकेगा ?
"जड ते जड त्रण काळमां, चेतन चेतन तेम;
प्रगट अनुभवरूप छे, संशय तेमां केम ?”
अतः अवसर आया है, करने योग्य है । उसकी जान पहचान करेंगे तो काम बनेगा ।
१. मुमुक्षु - अब तो मैंने अपने सब मित्रोंको बता दिया है कि मैं बदल गया हूँ और कृपालुदेव तथा प्रभुश्रीजीको मान्य किया है । तो अन्य लोग नहीं मानते कि ऐसा हो सकता है। तब मैं छाती ठोककर कहता हूँ कि ऐसा ही है और ऐसा ही समझें, अन्यथा नहीं । मैं जानेवाला हूँ । आज सभी मुमुक्षुभाइयोंसे कहे देता हूँ कि अब मुझे प्रभुश्रीजीकी कृपासे बहुत बल प्राप्त हुआ है। इस बार मेरे दिन यहाँ बहुत आनंद उत्साहमें बीते हैं क्योंकि अब मेरे पीछे स्वामी है ।
१ "मने मळ्या गुरुवर ज्ञानी रे, मारी सफळ थई जिंदगानी.
श्रीमद् देवस्वरूपे दीठा, लघुराज प्रभु लाग्या मीठा; आत्मिक ज्योति पिछानी रे, मारी सफळ थई जिंदगानी. भाग्योदय थयो मारो आजे, चोटी चित्तवृत्ति गुरुराजे; खरी करी में कमाणी रे, मारी सफळ थई जिंदगानी. दुस्तर भवसागर तरवानो, दिलमां लेश नहीं डरवानो; मळ्या सुजाण सुकानी रे, मारी सफळ थई जिंदगानी. मन वचन काया लेखे लगाडु, भक्ति सुधारस चाखुं चखाडुं; भक्ति शिवकर जाणी रे, मारी सफळ थई जिंदगानी. "
बोलिये, श्री सद्गुरुदेवकी
जय !
यहाँ मुझे अचिंतित, अकल्पित खूब आनंद आया है। पूरे जीवनमें ऐसा आनंद नहीं आया । प्रभुश्री - मुख्य बात तो आत्मा, भाव और परिणाम । अन्य किससे संबंध करना है ?
२. मुमुक्षु - 'सवि जीव करूं शासनरसी, ओवी भावदया मन उल्लसी ।'
प्रभुश्री- - उत्तम जीव है । मुझे हृदयसे अच्छा लगता है । कुछ नहीं है, मनुष्यभवमें यही सार है ।
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१. मुझे ज्ञानी गुरु मिले हैं जिससे मेरी जिंदगी सफल हो गई है। मैंने श्रीमद्को देवस्वरूपसे पहचाना है और लघुराज स्वामी मुझे अति प्रिय लगते हैं। आत्मिक ज्योतिको मैंने पिछान लिया है जिससे मेरा जन्म सफल हो गया है। आज मेरा अति भाग्योदय हुआ है कि मेरी चित्तवृत्ति गुरुराजमें लीन हो गई है । यही मेरी सच्ची कमाई है जिससे मेरा जन्म सफल हो गया है। दुस्तर भवसागर तिरनेके लिये मुझे हृदयमें लेशमात्र भी डर नहीं है क्योंकि सुज्ञ केवट मिल गये हैं जिससे मेरा जन्म सफल हो गया है। शिवजीभाई कहते हैं कि अब मैं मनवचन-कायाको शिवकर भक्तिमें लगाकर सफल करूँ और भक्ति-सुधारसका स्वयं आस्वाद लूँ तथा दूसरोंको भी उसका स्वाद चखाऊँ, इसीमें मेरी जीवनकी सफलता है ।
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