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उपदेशसंग्रह - १
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बनाना हो, उसके लिये यह आठ दृष्टिरूपी नक्शा - प्लान तैयार है। मकान बनानेका नक्शा तैयार होनेके बाद ईंट, मिट्टी, चूना, लकड़ी आदि सामग्री लानी चाहिये । वैसे ही आत्मार्थीको आत्मगुणरूपी सामग्री प्राप्त करनी चाहिये, वही शेष रह गयी है । यह तो नक्शा तैयार कर दिखाया है ।
इसी तरह कृपालुदेवने आत्मसिद्धिरूपी खजाना - नव निधानका भंडार दिखाया है, यह महान उपकार किया है। आत्मसिद्धिजी भी आत्मारूपी मकान बनानेका महान नक्शा है। ऐसा हुआ हो तो काले नागको देखकर भी किंचित् भी भयको प्राप्त नहीं होता ।
३. मुमुक्षु -
"वर्तमान आ काळमां, मोक्षमार्ग बहु लोप; विचारवा आत्मार्थीने, भाख्यो अत्र अगोप्य. "
समागम जीवकी वृत्ति, भावमें परिवर्तन कर डालता है। श्रवण और बोधसे कार्य होगा । उस पर भावना करे तो प्रीति जागृत होती है। मोहको दूर किये बिना मोक्ष नहीं जा सकते ।
१. मुमुक्षु - सत्संगके बिना रंग नहीं लगता यह तो एकदम सच्ची बात है और आत्मार्थीके लिये है यह भी सच है । पर आत्मार्थी ऐसा सोचकर बैठ जाये तो कार्य सिद्ध नहीं होता। यह तो आत्मार्थीके सिर पर बड़ी जिम्मेदारी है। जिसे कृपालुदेवकी मान्यता हुई हो उसे तो ऐसा होता है कि मैं जहाँ जहाँ जाऊँ, वहाँ कृपालुदेवका डंका बजा दूँ - 'अपूर्व अवसर ओवो क्यारे आवशे ?' ज्ञानी मुमुक्षुको ज्ञान दे तो मुमुक्षु आत्मा अर्पित कर देता है
"शुं प्रभु चरण कने धरूं ? आत्माथी सौ हीन; ते तो प्रभुओ आपियो, वर्तुं चरणाधीन. "
आम्रवृक्षको पानी पिलानेसे आम्रफल रस देता है, गायको घास- दाना देनेसे गाय दूध देती है । वैसे ही मुमुक्षुको ज्ञान मिलनेसे वह अपने प्राण भी दे देता है । वह ऐसा समझता है कि मुझे जो वस्तु अनंतकालसे नहीं मिली वह देकर भगवानने मुझ पर अनहद उपकार किया है । अतः वह प्राण भी अर्पण कर देता है । जहाँ पर भोले नासमझ लोग धर्मको नहीं समझते हो वहाँ वहाँ पर प्रभुश्रीजीकी पधरावनी करवाकर श्रीमंतोंको पैसेका सदुपयोग करना चाहिये और भोले लोगोंको आत्माका अपूर्वलाभ दिलवाकर इस आश्रमरूपी झोंपड़ीमें आते करना चाहिये ।
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प्रभुश्री - एक बहन छोटी उम्रकी है किन्तु उसके भाव अच्छे हैं, उसे चौथे व्रतकी प्रतिज्ञा लेनी है । आत्मा है । बहिन हो, भाई हो, पर मनके कारण सब है । भाव और लक्ष्य पकड़ लिया तो बेड़ा पार है । यह महाव्रत बड़े से बड़ा है । धन्य है उसे जो यह व्रत ग्रहण करेगा। यह व्रत हमें अंतरंगसे अच्छा लगता है और करने योग्य है, अतः यही करना चाहिये। यह मनुष्यभव तो कल चला जायेगा । बहनको यहाँ ब्रह्मचारिणी बहनोंके साथ रहनेकी वृत्ति भी है। पुद्गल विनष्ट हो जायेंगे, नाशवान हैं, उन्हें आत्मा मान बैठा है । वह तो कहीं नहीं मिलेगा, उसे तो ज्ञानीने जाना है । ज्ञानियोंने मनुष्यभवको दुर्लभ बताया यह श्रेष्ठ बात है । इस भवमें आत्मा एक न एक दिन मोक्ष प्राप्त करेगा, जड़ नहीं कर सकता। यह जीवका कर्त्तव्य है । पुनः पुनः ऐसा अवसर नहीं मिलेगा । अनंतकालसे भटक रहा है। सबके पास संयोग और सामग्री है उसीमें लवलीन - एकाकार हो गया है । जैसे दूधमें मक्खन रहा हुआ है वैसे । आत्मा वैसा नहीं है, अलग है । ज्ञानीपुरुष कितना कहें? 'आत्मा है, नित्य है, कर्त्ता है, भोक्ता है, मोक्ष है और मोक्षका उपाय है।' ये पद रामके बाण हैं ।
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