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उपदेशामृत
हाथसे बाजी निकल गई तो फिर नहीं आयेगी । ऐसा अवसर मिला है, मेरे भाई, चेत जा । कैसे कैसे थे ! अंबालालभाई, सोभागभाई, मुनि मोहनलालजी, ऐसे ऐसे भी सब गये । अतः इस मनुष्यभवमें चेत जा । जगतकी मायामें प्रीति - धन, बाल-बच्चे आदि चाहिये । धूल पड़ी! तेरे कोई हुए नहीं । अकेला आया और अकेला जायेगा । तेरे कोई नहीं है ।
पत्रांक ४३० का वाचन
"कोई भी जीव परमार्थको मात्र अंशरूपसे भी प्राप्त होनेके कारणोंको प्राप्त हो, ऐसा निष्कारण करुणाशील ऋषभादि तीर्थंकरोंने भी किया है; क्योंकि सत्पुरुषोंके संप्रदायकी ऐसी सनातन करुणावस्था होती है कि समयमात्रके अनवकाशसे समूचा लोक आत्मावस्थामें हो, आत्मस्वरूपमें हो, आत्मसमाधिमें हो, अन्य अवस्थामें न हो, अन्य स्वरूपमें न हो, अन्य आधिमें न हो; जिस ज्ञानसे स्वात्मस्थ परिणाम होता है, वह ज्ञान सर्व जीवोंमें प्रगट हो, अनवकाश रूपसे सर्व जीव उस ज्ञानमें रुचियुक्त हों, ऐसा ही जिसका करुणाशील सहज स्वभाव है वह सनातन सम्प्रदाय सत्पुरुषोंका है।"
सबका भला हो! ऐसा अवसर फिर प्राप्त नहीं होगा । लूटमलूट करने जैसा है । इस स्थान पर कृपालुदेवकी कृपा है कि सुननेका संयोग मिला। ढेर सारा पुण्यबंध होता है। जीव यदि भाव रखे तो काम हो जाय । चले बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। एक न एक दिन मायाको छोड़ना ही पड़ेगा और आत्माके साथ जाये सो ग्रहण करना पड़ेगा, अतः चेत जाओ। 'सर्व जीव आत्मस्वरूपमें हो, आत्मसमाधिमें हो, अन्य... में न हो ।' यह वचन ! अहा ! काम निकल जाय ! किंतु प्रेम नहीं है । तुझे करना है वह किया नहीं, पकड़ना है वह पकड़ा नहीं, सब व्यर्थ गया । धूल पड़ी! धर्म बढ़ानेसे बढ़ता है, माया-मोह, जन्म-मरण आदि भी बढ़ानेसे बढ़ते हैं और घटानेसे घटते हैं । कलका किसे पता है ? अतः चूके नहीं, चेत जायें - हृदयमें लिख रखने जैसी बात है । एक स्मरण भूलने योग्य नहीं है, याद करते रहें । यथार्थ बात है । यह बात कौन जानता है ? ऐसा (मरण) हो तो ? अतः चेत जायें, ढील न देवें, घबराये नहीं । चाहे जो हो, पर हमें अपना काम कर लेना चाहिये । अवसर आया है, भूलें नहीं। बाकी तो सर्वत्र विष ही विष है, कहीं अच्छा नहीं है, छोड़ने योग्य है, सब प्रतिबंध है, अतः चेत जायें। कोई काम नहीं आया, अतः आत्माको याद करें और उसे ध्यानमें लेते रहें । आलस्य और प्रमादने बुरा किया है। ये जीवके शत्रु हैं ।
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आत्मार्थके लिये एक 'आज्ञा' पालन करनेका कहना है । जीवको उल्लासभाव नहीं आता । दूसरी बातों पर प्रेम-प्रीति आती है और इस पर नहीं आती । ' कहनेवाला कहे देता है और जानेवाला चला जाता है ।
"जीव यदि अज्ञानपरिणामी हो तो जैसे उस अज्ञानका नियमित रूपसे आराधन करनेसे कल्याण नहीं है वैसे मोहरूप मार्ग अथवा ऐसा इस लोकसंबंधी जो मार्ग है वह मात्र संसार है; उसे फिर चाहे जिस आकारमें रखें तो भी संसार है । उस संसारपरिणामसे रहित करनेके लिये असंसारगत वाणीका अस्वच्छंद परिणामसे जब आधार प्राप्त होता है, तब उस संसारका आकार निराकारताको प्राप्त होता जाता है।” (श्रीमद् राजचंद्र )
स्वयं मान लेता है कि मैं धर्म करता हूँ । अहा ! कितने खेदकी बात है! चुटकी भरकर खड़ा
१. मूल गुजराती पाठ - 'कहेनारो कही छूटे अने वहेनारो वही छूटे ।'
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