________________
उपदेशसंग्रह - १
२०९
I
अन्यके लिये थोड़े ही है ? अपने लिये है । छोड़ना तो पड़ेगा । छोड़े बिना मुक्ति नहीं है । अप्रतिबंध और असंग ! यही अपना मार्ग है। बाकी अन्य तो कर्म हैं। करना है अपने आत्माके लिये ही ।
ता. १०-१-३६,
शामको
पत्रांक ९३५ का वाचन
"चक्रवर्तीकी समस्त संपत्तिकी अपेक्षा भी जिसका एक समय मात्र भी विशेष मूल्यवान है ऐसी यह मनुष्यदेह और परमार्थके अनुकूल योग प्राप्त होने पर भी, यदि जन्म-मरणसे रहित परमपदका ध्यान न रहा तो इस मनुष्यदेहमें अधिष्ठित आत्माको अनंतबार धिक्कार हो !
जिन्होंने प्रमादको जीता उन्होंने परमपदको जीत लिया ।"
क्या बात आयी ? करना, करना और करना । किये बिना नहीं होगा। मनुष्यभवका एक समय चक्रवर्तीकी ऋद्धिसे भी दुर्लभ कहा गया । जन्ममरणसे छूटनेके लिये इस जीवको चेत जाना चाहिये। कुछ समुचित करना पड़ेगा । किये बिना छुटकारा नहीं है । राजाने कितने ही लोगोंको भूमिगृहमें उतारा था, और सब भूखे प्यासे बैठे थे । पर उनमेंसे एक उद्यमी था । उसने उद्यम किया तो ढूँढने पर खानेका डब्बा और पानी मिला। बड़े सेठकी नौकरीमें कई लोग होते हैं, पर सेठने भी तो कुछ किया ही होगा न ?
१. मुमुक्षु - आप तथा अनंतज्ञानी जो वचन कहते हैं वे यथातथ्य हैं, जैसे हैं वैसे ही हैं एवं ग्रहण करने योग्य ही हैं । परंतु हृदय उस ओर झुकता नहीं और करनेकी इच्छा नहीं होती इसका क्या कारण है ?
प्रभुश्री-सोचिये, कुछ तो चाहिये न ?
१. मुमुक्षु - कारण ढूँढते हैं तो मिलता नहीं । और विचार भी चलता नहीं ।
प्रभुश्री - विचार ही नहीं हुआ। कुछ है । कुछ भी न करे तो बैठे-बैठे कहाँसे खायेगा ? आत्मा न हो तो सब मुर्दे हैं । अतः कुछ है तो सही । माँ-बापके बिना पुत्र कहाँसे आयेगा ? माँ है तो पुत्र है । भगवानने पाँच समवाय कारण कहे हैं- कारण, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत और पुरुषार्थ - एक हाथ से ताली नहीं बज सकती, दोनों हाथ चाहिये । देहको सुखाकर, तप-जप कर, जला-जला कर भी अंतमें आत्माका मोक्ष हुआ। वह भी अपने भावसे ही ।
१. मुमुक्षु - हाथी के हौदे पर केवलज्ञान हुआ । तो उसने वहाँ क्या किया ?
प्रभुश्री- - बस यही किया । हाथीके हौदे पर हो गया, वही किया है! वस्त्र मैला हो, पर धोकर आये तो उज्ज्वल हो जाता है । किये बिना कुछ नहीं होता, करना पड़ेगा। एक पहियेसे गाड़ी नहीं चलती, दो पहिये चाहिये । एक पहियेसे चली तो उसका बनानेवाला तो था न ? यहाँ बैठे हैं, तो वह भी कुछ करके आये हो तभी न ? चित्र-विचित्र सब दिखाई देता है और होता है । पर इसके बिना नहीं। पर है तो सही । भेदका भेद जानना है ।
१. मुमुक्षु - परसों आप कहते थे कि भेदका भेद जानना है, पर आज तक हमें तो उसका अंशमात्र भी मालूम नहीं हुआ ।
- अब क्या समझना है ? और भेदका भेद क्या है ?
For Private & Personal Use Only
प्रभुश्री
Jain Educarnational
www.jainelibrary.org